नमन डा बी के पासी
सन 1991-92 का साल था , एम ए अंग्रेज़ी में करने के बाद कुछ और पढ़ा जाए इस बात की इच्छा थी लिहाजा सोचा कि पीएच डी करने में तो समय लगेगा क्यों ना एम फिल कर लिया जाए, इंदौर के देवी अहिल्या विवि में थोड़ा परिचय था, स्याग भाई ( डा रामनारायण स्याग ) ने ताजा ताजा शोध पूरा किया था और शिक्षा विभाग में अक्सर आना जाना होता था, देवास की मीना बुद्धिसागर उन दिनों वहा शोध के लिए पंजीकृत हुई ही थी, डा उमेश वशिष्ठ, डा सुशील त्यागी, डा छाया गोयल और डा देवराज गोयल से परिचय था ही, सो सोचा कि क्यों ना यहाँ कुछ पढाई की संभावनाएं टटोली जाएँ. सीधा जाकर डा बी के पासी से मिला तो उन्होंने अपने चिर परिचित अंदाज में कहा क्या करेगा अब पढ़कर और इतना अच्छा काम कर रहा है तो अब क्या करना है फिर मैंने जिद की तो उन्होंने कहा कि थोड़ा ठहर जा मै एक नया पाठ्यक्रम शुरू कर रहा हूँ भविष्य अध्ययन मान्यता के लिए प्रकरण यु जी सी गया है आते ही सूचना करूंगा.
बात आई गयी हो गयी, एक दिन बैतूल में गया हुआ था एक शिक्षक प्रशिक्षण में था तो डा पासी का फोन घर पहुंचा और कहा कि तुरंत मिलने को बुलाया है. मै आते ही विवि के शिक्षा विभाग में चला गया तो डा पासी ने कहा कि बोल कोर्स करना है, स्वीकृति आ गयी है. डा पी के साहू, इसके प्रभारी होंगे डा दास सह प्रभारी, डा पाल और प्रभाकर मिश्र के साथ सुशील त्यागी, उमेश वशिष्ठ आदि भी पढ़ाएंगे, और मै समय समय पर पढ़ने आया करूंगा, मैंने कहा आप पढने आयेंगे, तो बोले हाँ भाई, मै तो अभी भी सीख रहा हूँ और तुम लोग शिक्षा को जमीन पर उतार रहे हो और मै यहाँ एक कमरे में बैठा रहता हूँ और सबको डांटता रहता हूँ तो काम कैसे चलेगा, और अब सीखूंगा तुम लोगों से. प्रवेश प्रक्रिया होने के बाद पता चला कि इस पाठ्यक्रम में कई लोग थे देश भर के विवि से प्राध्यापक, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और भी ढेरों - नया विषय था और डा पासी का नाम और वे भी खूब समय देते थे. उन्ही दिनों उन्होंने इसी विभाग में बच्चों के लिए लड़ झगड़कर एक स्कूल चालू किया था, AVRC लेकर आये थे, अकादमिक स्टाफ कॉलेज को नया रूप देने में लगे थे. खूब देर तक शाम तक बैठे रहते थे और सबको प्यार से बिठाकर काम करवा लेते थे.
डा पासी एक विलक्षण व्यक्ति थे जो चंडीगढ़ के पंजाब विवि के एडवांस शिक्षा केंद्र में सबसे छोटी उम्र में सीधे प्रोफ़ेसर बनने वाले देश के संभवतः पहले व्यक्ति थे मात्र 23 या 25 बरस की उम्र में, माईक्रोटीचिंग को लेकर उनका काम पूरी दुनिया में अनूठा और अदभुत था.उनके निर्देशन में इसी विषय और इसके पहलूओं पर देश भर के बल्कि दुनियाभर के शोधार्थियों ने अपना शोध कार्य पूरा किया. मेरे साथ साधना खोचे, प्रभा निगम, गुलाब बोरकर और कई साथी थे. मैंने एम फिल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करके देवी अहिल्या विवि में सिल्वर मैडल प्राप्त किया.
बाद में डा पासी के साथ आदिवासी शिक्षा पद्धति को लेकर अपना शोध कार्य भी आरम्भ किया था दो तीन अध्याय भी लिखा गए थे, परन्तु उस समय देवी अहिल्या विवि के कुलपति बनने की होड़ में डा उमराव सिंह चौधरी और डा शोभा वैद्य से उनकी सार्वजनिक लड़ाई हुई और मीडिया में बहुत बुरी तरह से यह लड़ाई उछली जोकि एक पूरी प्रक्रिया का दुखद पहलू था. उन्होंने कभी डा चौधरी और डा शोभा वैद्य का जिक्र नही किया अपने लेक्चर में और ना कभी असम्मान किया जब अपने शोध के दौरान एक बार उनसे मिलने दिल्ली उनके घर गया था जब वे इग्नू में थे तो बोले यार ये विश्व विद्यालयों की राजनीति ही होती है और फिर मेरी शोभा से लड़ाई थोड़े ही है ना उमराव सिंह से वो तो भला आदमी एडवांस लिबरल स्टडी का विभाग चला रहा है और देर रात तक सबको बुला बुलाकर पढाता रहता है , अब भला बताईये जो लड़ाई इतनी ओछी हो गयी थी और मीडिया में हद से गुजर गयी थी वही वे इतने सम्मानजनक तरीके से अपनी बात रखते थे. प्रवर को भी कभी इसमें आने नहीं दिया ना सुभाषिनी जी को. बाद में डा पासी इग्नू में चले गए, फिर थाईलैंड, और फिर साक्षरता अभियान में पर बाद में वे लगातार व्यथित रहें और फॉर काम के लिए इंदौर नहीं आ सके. मेरा शोध कार्य मैंने छोड़ दिया डा साहू भी कोटा चले गए, डा गोयल बड़ौदा, और उमेश भाई लखनउ. असल में मेरे पास उनकी स्मृतियाँ इतनी है कि भाषा कुंद हो गयी है, व्यथित हूँ और बहुत बेचैन. उनका होना हम सबके लिए बड़ी धास्ती था और सम्बल पर अब सिर्फ स्मृतियाँ शेष है.
इधर उनकी तबियत की खबर लगातार मिल रही थी उनके मेघावी पुत्र, जो इंदौर के प्रसिद्द न्युरोलोगिस्ट है डा प्रवर पासी से भी बीच में बात हुई थी, Subhashini Passii जी, जो उनकी धर्म पत्नी है, से भी फेस बुक पर खबर मिलती रहती थी पर मिल नहीं पाया. एक दो बार कोशिश की तो पता चला वे इलाज के लिए दिली गए हुए थे.
कल खबर लगी और आज अग्रज डा उमेश वशिष्ठ, जो आजकल लखनऊ विवि में शिक्षा विभाग के हेड है, की पोस्ट से भी पता चला तो बहुत दुःख हुआ. इंदौर के शिक्षा विभाग को सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाने का शपूरा श्रेय डा पासी और उनके नवोन्मेषी विचारों को जाता है, आज उनके विद्यार्थी पूरी दुनिया मे परचम फैला रहे है, देवी अहिल्या विवि के इस केंद्र, जो भंवर कुआं पर है, में ही उनके छात्र है जो इस विभाग को नित नई उंचाईयों पर ले जा रहे है. हमने जो भी शिक्षा शास्त्र में सीखा उसमे डा बी के पासी का बहुत बड़ा योगदान है.
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