सहिया यानी आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को गाँव में बहुत सम्मान है क्योकि वो गर्भवती और धात्री महिलाओं के साथ बच्चों का ख्याल रखती है और आधी रात को भी गाँव के लोगों की मदद करने को तैयार रहती है, गाँव की महिलाओं के साथ ये गा रही है स्वागत गीत हमारे लिए जिसका अर्थ है कि गाँव में कोई अतिथि आया है, हमारे जंगल, चारों ओर उग रहा धान का नवान्न और दूर तक फैले हुए पत्थर जो हमारे गाँव की सुरक्षा करते है, बांस के झूमते पेड़ और इक्का दुक्का महुए के पेड़, हमारे सारे जानवरों के साथ सूअर भी स्वागतातुर है - जो हमारे गाँव के लोहार पालते है, सभी फ़लों के साथ हमारे गाँव का नींबू जिसकी विशेष प्रजाति है - ये बहुत बड़े है और पक रहे है और हमारे बच्चों को देने से वे खटाई खाकर अन्न पचाते है, ये नीम, पीपल, बरगद और बबूल के पेड़ जो हमारे गाँव की शान है और मेड़ों पर उग रहे छोटे छोटे पौधे जो साक्षी है हमारी सभ्यता के कि सब उगता है और एक समय के बाद नष्ट होता है क्योंकि नया आने के लिए पुरानों को खत्म होना होता है और बड़े पेड़ों को स्थायी बनाने के लिए ये पौधे कुर्बानी देते है - एक मौसम में नन्हे से रंग बिरंगी फूल उगाकर खत्म हो जाते है, जिन्हें कोई शायद ही चिन्हित कर पाता हो, सब मिलकर स्वागत कर रहे है।
कोई शिकायत नही किसी को, गाँव में बारहवीं पास सिर्फ एक युवा है, एक जितेंद्र है जो दसवीं पढ़ रहा है और बहुत आदर से पूछकर मेरा फोटो लेता है और फिर पूछता है क्या शहर में सुविधाएं हमारे गाँव से ज्यादा होती है, वह पूछता है कि क्या हमारे गाँव में कभी रेल आ सकती है, हम लोग देखना चाहते है और उसमें बैठना चाहते है क्योंकि गाँव के लोग जब मुम्बई या दिल्ली या इलाहाबाद के पास शंकरगढ़ की पहाड़ियों पर ईंट भट्टों पर काम करने जाते है तो वे कहते है कि दो पटरियां रात भर में रेल को कहाँ से कहाँ छोड़ आती है।
ये है झारखंड के मुंडा आदिवासी और परम्परा। आज भी राज्य में लगभग 38 प्रकार की लोकभाषा बोली और समझी जाती है, 30 से ज्यादा लोकभाषाओं में पत्रिकाएं निकल रही है, खरीदी और पढ़ी जा रही है और तेजी से बढ़ते कार्पोरेट्स और उद्योगों के बाद भी लोग सहज और स्नेही है।
मैं शहर में रहता हूँ पर इनमें से एक भी गुण नही मुझमे, कितना पिछड़ा हूँ मैं - इतनी उच्च शिक्षा, शोध, संस्कृति और संस्कार प्राप्त करने के बाद भी।
मुझे लगता है 48 वर्ष की उम्र तक क्या किया मैंने ?
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डुलमी गाँव, खूंटी, झारखंड का दूरस्थ ग्राम जहां हम लोग है और सुबह पहुंचे है। जाते ही गाँव की कांकड़ पर मुंडा आदिवासी इकठ्ठे है और ढोल लेकर हमारा स्वागत करने को बेताब। हमे पवित्र नदी के पानी से भरे एक पीतल के लोटे से एक बड़े से भीगे पत्ते से पानी छिटकर हमारा स्वागत किया गया और फिर हमें स्थानीय मुंडारी भाषा के गीत में डुबोकर और प्यार में भिगोकर गाँव के अंदर ले जाया गया। बेहद सीधे और सहज लोग अपनी बात शुरू करते है और बताते है कि कैसे वे बच्चों और गर्भवती महिलाओं की देखभाल करते है, कोई बच्चा कुपोषित नही दिख रहा यहां, एकजुट का काम दिख रहा है जमीन पर ।
हमें कुर्सी पर बिठाकर पानी दिया गया। आश्चर्य यह था कि पानी गर्म था, पूछने पर हमें सहिया यानी आशा ने बताया कि आप लोग दूर से आये है, दूसरी जगहों का पानी पीते हुए, यहां का पानी आपको तकलीफ दे सकता है इसलिए हम गर्म पानी दे रहे है ताकि आपको कोई बीमारी ना हो, और अगर कोई बीमार पड़ गया तो हमारे गाँव की बदनामी होगी और हम नही चाहते कि कोई हमारे गाँव को कोसे और अतिथि बीमार पड़े क्योकि अतिथि तो सच में भगवान होते है।
और मैं सोच रहा था कि हम पढ़े लिखे समझदार है, सभ्य और सुसंस्कृत है , गजब के भोले लोग है यहां और पूर्ण वैज्ञानिक मानसिकता से परिपूर्ण।
हम तो घर में कोई आता है तो ये बारीकी वाली बात ध्यान नही रखते , कितना पिछड़ा हूँ मैं और कितना सीखना है मुझे अभी
जगजीत कौर की आवाज में सुने यह अदभुत गीत
तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हे उनकी कसम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो ।
ये माना मैं किसी काबिल नहीं हूँ इन निगाहों मे
बुरा क्या है अगर ये दुःख ये हैरानी मुझे दे दो ।
बुरा क्या है अगर ये दुःख ये हैरानी मुझे दे दो ।
मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हे कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगेहबानी मुझे दे दो ।
कोई दिन के लिए अपनी निगेहबानी मुझे दे दो ।
वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था
बड़ी शै है अगर उसकी पशेमानी मुझे दे दो ।
बड़ी शै है अगर उसकी पशेमानी मुझे दे दो ।
- साहिर
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उफ़, ये नज्म ....
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राजेंद्र नाथ 'रहबर' की एक बेहतरीन नज़्म-
तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए खत मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे खत मैं जलाता कैसे
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाए रखा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको, जिन्हे ईमान बनाए रखा
तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे
जिनका हर लफ़्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे जो मुझको जो पैगामे ज़बानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तेरे हाथों के लिखे खत मैं जलाता कैसे
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
सालहा साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे
तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए खत मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे खत मैं जलाता कैसे
तेरे खत मैं आज गंगा में बहा आया हूं
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूं...
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नुक्कड़ टेफे - रूमानी ख्यालातों की जमीनी हकीकत
"Tea is the answer to most of our Problems"
एक अदभुत प्रयोग Priyank Patel का
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आज बहुत बड़े विश्वास के साथ लौट रहा हूँ, किस मिट्टी के बने है ये युवा, अदभुत और अप्रतिम कार्य और सबसे अच्छा कि इस टेफे में काम करने वाले सभी युवा मूक और बधिर है जिन्हें प्रियंक ने कड़े प्रशिक्षण और प्यार से सींचा है। रायपुर शहर में इन मूक बधिर युवाओं को 4500 से लेकर 10000 ₹ प्रतिमाह मिल रहे है जो निश्चित ही बड़ा काम है। रायपुर के श्रेष्ठ लोग आप यहां देख सकते है टेफे में जो चाय की चुस्कियों के साथ कुछ खाते हुए लूडो, कैरम या कुछ खेल खेल रहे होते है। यदि आप रिसेप्शन पर अपना मोबाइल जमा करा दें जब तक आप टेफे में है तब तक के लिए तो आपको 10% छूट मिलेगी क्योकि आप अपने दोस्तों के साथ आये है तो बात करिये मोबाईल तो लगा ही है अपने प्राणों के साथ चौबीसों घण्टे पर यहां बात कीजिये घर परिवार देश समाज और अपनी !!!
साल भर कई प्रकार के कार्यक्रम चलते है यहां - जो रायपुर शहर के दो जगहों - पंडरी और समता नगर, पर संचालित टेफे में होते रहते है। प्रियंक ने बताया कि अब वो थर्ड जेंडर के लोगों को साथ रखते हुए "अनुवाणी"टेफे खोल रहे है जहाँ चाय कॉफ़ी के साथ किताबें भी होंगी।
वैभव, आलोक से लेकर जितने भी युवा साथी थे उन्होंने कहा कि कविता हमे जोड़ती है। इस दिन दिल्ली से गोपाल शून्य और वर्षा भी मौजूद थे। गोपाल कार्टूनिस्ट है और इन दिनों छग में कार्टून बनाने आये हुए है। पहली बार मित्र हेमंत पाणिग्रही Hemant Panigrahi से मिला जिनसे फोन पर सन 2005 से बातें कर रहा हूँ। हेमंत बस्तर से है और निर्भीक , जुझारू पत्रकार है। दुनिया कितनी गोल और छोटी है और प्यारी भी, सब लोग अच्छे होते है यह विश्वास बार - बार पुख्ता होता है, साथ ही मेरे जैसे बदमाश भी हर जगह पहुंच जाते है यह भी !!!!
ये शाम इसलिए ख़ास थी कि हरदा में अजय विमल और विष्णु, Ajay Pandit, Vimal Jat ,Vishnu Prasad Jaiswal, केसला में संदीप महतो Sandeep Mehto पांढुर्ना में एक युवा साथी, देवास में अमित दुबे कुछ नई सोच के साथ युवाओं को समझकर युवाओं के लिए पांचवा स्थान बनाने के लिए प्रयत्नशील है वही हर्षल खानविलकर Harshal Khanwilkar ने सुदूर उड़ीसा में काम शुरू कर दिया है, डूंगरपुर में Bedant Mishra Samar शिक्षा में गजब का काम कर रहे है, ऐसे में प्रियंक और उनके जोशीले साथियों को इस तरह से काम करते देख बहुत ही खुशी हुई और नई उमंग से दिल भर आया। प्रभावित हुआ हूँ और एक बार फिर लग रहा है कि सारे घटाटोप में ये लोग उम्मीद की किरण है।
आप रायपुर आये और इन दोस्तों से ना मिले तो जीवन व्यर्थ जान लीजिए।
Love and respect you all guys, stay blessed. I am sure we will be able to create V space and do some great work for society, my only request to you all is Stay Connected as well.
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