एक ज़िंदा शख्स जिसके साथ लंबे समय तक काम किया खूब लड़े झगड़े ओर लिखा पढ़ा, अपने ब्राह्मणत्व को छोडकर दलितो के बीच काम किया ओर समाज से भी भिडे वो अचानक कहा कब किधर कैसे चला गया, बिना पूछे बिना बताए एक फोन तो कर देते कि बुलावा आ गया है कहे कबीर सुनो भाई साधो जिन जोड़ी तिन तोडी, ज़रा हलके गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले इस भजन को दिनेश के साथ प्रहलाद टीपान्या प्रोफ़ेसर लिंडा हेस(स्टेनफोर्ड विवि अमेरिका) कालूराम, नारायणजी के साथ गाते हुए एक उम्र गुजर गयी आज भी दोस्तों की फरमाईश पर यह भजन मैं चाव से गाता हूँ पर यह जिन जोड़ी तिन तोडी इतने जल्दी हो जाएगा पता नहीं था दिनेश
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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