भाई अशोक पाण्डेय के सौजन्य से
महमूद दरवेश
[ 13 मार्च 1941 -- 9 अगस्त 2008 ]
अगर लौट सकूं शुरूआत तक
कुछ कम अक्षर चुनूंगा अपने नाम के लिए
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अगर जैतून के तेल जानते होते उन हाथों को
जिन्होनें रोपा था उन्हें,
आंसुओं में बदल गया होता उनका तेल
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आसमान पीला क्यूं पड़ जाता है शाम को ?
क्यूंकि तुमने पानी नहीं दिया था फूलों में.
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मैं भूल गया बड़ी घटनाएं और एक विनाशकारी भूकंप
याद है मुझे आलमारी में रखी अपने पिता की तम्बाकू.
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इतना छोटा नहीं हूँ कि बहा ले जाएं मुझे शब्द
इतना छोटा नहीं हूँ कि पूरी कर सकूं यह कविता.
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(अनुवाद : मनोज पटेल
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