कहा तो उसने कुछ नहीं था पर अबोले ही सब कुछ स्पष्ट था यह भी कि एक खत्म हो चुके और भावुक के साथ रहना बहुत मुश्किल है यह भी कि जीवन में जब सामने प्रगति के सोपान राह देख रहे हो तो पीछे पलटकर कोई मुसीबत अपने साथ नहीं रख सकता यह भी कि जीवन से थके हारे और ऊबे हुए लोग उसे पसंद नहीं थे, पर उसने तो तुम्हे जीवन से ज्यादा चाहा था ये तर्क अब मुझपर तीर नहीं चला सकते अब तो सामने हरियाली है और विरासत में मिला एश्वर्य यह तंगहाली और भोथरी लिजलिजी भावनाए मुझपर असर नहीं डालती और एक इत्र के मानिंद उड़ गया था वो उसके जीवन से-काहे का ताना...कौन तार से जब जोड़ी चदरिया(मन की गांठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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