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सात कारण अन्ना हजारे को देश के लिए सात दिन देने के

सात कारण अन्ना हजारे को देश के लिए सात दिन देने के
पहला कारण है श्री अन्ना हजारे खुद. भ्रष्टाचारी को सज़ा नहीं मिल पाती क्यूंकि उसकी जांच करने वाला भी भ्रष्ट होता है. घूस लेने वाला जानता है की पकड़े जाने पर वह घूस देकर छूट जायेगा. करोड़ों की संपत्ति एकत्र कर चुका प्रवचनकार लाखों की गाड़ी से उतर कर जनता को ज्ञान बांटता है की माया-मोह त्यागो, तो आमजन इस बात को केवल उसकी आदत मानकर दूसरे कान से निकाल देती है. लेकिनं दशकों बाद देश को एक ऐसा नेतृत्वकर्ता मिला है, जिसकी निजी आवश्यकताएं और संपत्ति वाकई लगभग शून्य हैं. अहमदनगर, महाराष्ट्र के मंदिर के एक छोटे से कमरे में रहने वाले किशन बाबूराव हजारे यानी अन्ना हजारे के नाम कोई संपत्ति, कार, मकान-खेत-उद्योग या फार्म हॉउस नहीं है. एक बिस्तर और खाने की थाली यही निजी संपत्ति के नाम पर अन्ना की चीज़ें हैं. न्यूनतम आवश्यकताएं ही इस संत व्यक्तित्व की सबसे बड़ी शक्ति है और किसी धन-पद-नाम-पुरूस्कार आदि की अपेक्षा न होना ही उन्हें अजेय बना देता है. वर्षों तक जनकल्याण और न्याय के लिए किये गए संघर्ष का तप उनके सामान्य से चेहरे को सम्मोहक बना देता है. निडरता और अन्याय के प्रति आक्रोश उनकी आवाज़ में झलकते हैं. आश्चर्य नहीं कि आज करोड़ों भारतीयों को खादी की वेशभूषा में गांधी टोपी लगाये श्री अन्ना हजारे को देखकर बरबस गांधीजी की याद आ जाती है. इसलिए श्री अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ाई में उनका साथ देने का सबसे पहला कारण है कथनी और करनी में समरूपता वाला और पद-संपत्ति के प्रति निर्मोही ऐसा जननेता देश को बार-बार नहीं मिलेगा.



दूसरा, कारण है आत्मरक्षा...जी हाँ, देश को थोड़ी देर के लिए अपने हाल पर छोड़ दीजिये, अपने परिवार की रक्षा तो हर कोई चाहता है. भारत में भ्रष्टाचार आज कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और प्रेस, यानी लोकतंत्र के चारों स्तंभों में घुन की तरह लग चुका है. पूरी दुनिया में हजारों बार परखा हुआ तथ्य है भ्रष्टाचार और माफिया दोनों साथ साथ पनपते है. देश में जितना भ्रष्टाचार का स्तर ज़्यादा होगा, अपराधी तत्वों और माफिया के हौसले उतने ही बुलंद होंगे. भारत में भी हम देख सकते हैं की भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ने के साथ कानून का डर अपराधियों में समाप्त होता जा रहा है. अपराधी का संरक्षण नेता और नेता का पोषण भ्रष्ट अधिकारी करते हैं. इसी खतरनाक गठबंधन के कारण आज यदि कोई माफिया तो छोडिये छोटा-मोटा गुंडा भी किसी आम आदमी के पीछे पड़ जाए तो वह कानून की मदद लेने की बजाय कुछ ले-दे कर अपनी जान छुड़ाना चाहता है. आज गुंडा माफिया तत्व सामान्य जन की संपत्ति के पीछे पड़े है, तय जानिये कल उसकी इज्ज़त और ज़िंदगी भी छीनने लगेंगे. इसलिए अपनी और अपनी आनेवाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है भ्रष्टाचार को रोक कर गुंडा-माफिया तत्वों की प्राणवायु समाप्त की जाए.



तीसरा कारण है पारिवारिक समृद्धि की कामना जो हर इंसान में विद्यमान होती है. अब ये प्रश्न जायज़ है की श्री अन्ना हजारे जब स्वयं अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनाना चाहते हो उनके आन्दोलन की सफलता से हमें समृद्धि कैसे मिलेगी ? देश और किसी सामान्य जन दोनों के लिए समृद्धि दो तरह से ही बढ़ सकती है, आय बढ़ाकर या खर्चे घटाकर. आज सब जानते हैं की सरकारों द्वारा खर्च किये जाने वाले एक रुपये का ज़्यादातर हिस्सा भ्रष्टाचार की स्थापना की भेंट चढ़ जाता है और मात्र चंद पैसे ही वास्तविक कार्य में खर्च होते हैं, इसे सामान्य भाषा में कहते हैं रूपया चंद पैसों में चलना. आज यदि सरकार का रूपया दस पैसे में चलता है और श्री अन्ना हजारे के आन्दोलन और जन लोकपाल के कारण पच्चीस पैसे में भी चलने लगा तो इसका अर्थ होगा सरकार के पास बिना एक भी नया कर लगाए या पुराने करों की दर बढ़ाये अथवा पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य बढ़ाये, ढ़ाई गुना अधिक क्रय शक्ति. निश्चित तौर पर इस से देश का विकास तो होगा ही आम आदमी पर करों और महंगाई का बोझ घटेगा. इससे आम आदमी उतनी ही आमदनी में ज़्यादा आसानी से जीवन यापन कर सकेगा, जिसे आप उसकी समृद्धि भी कह सकते है.



हांगकांग 70 के दशक के प्रारंभिक वर्षों तक भ्रष्टाचार और माफिया की जकड में था. अंततः 1974 में गठन हुआ इन्डिपेंडेंट कमीशन अगेंस्ट करप्शन (ICAC) का. इस साधन संपन्न लेकिन स्वतंत्र संस्था ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध धरपकड़, रोकथाम और जन जागरूकता के तीन सूत्रीय कार्यक्रम चलाकर हांगकांग को दुनिया में ईमानदारी के लिए प्रसिद्द विश्व-व्यापार के पसंदीदा केंद्र में बदल दिया. पहले ही वर्ष में लगभग साठ प्रतिशत बड़े अधिकारियों की छुट्टी कर ICAC ने उनमें से अधिकांश को जेल की राह दिखाई और जो बचे उन्होंने रिश्वत के नाम से ही तौबा कर ली. हांगकांग की तरह ही इक्वाडोर, तंजानिया, बोत्स्वाना, माली, सेंगल जैसे छोटे-छोटे राष्ट्र भी अपने यहाँ भ्रष्टाचार मिटाने में सफल रहे और भुखमरी की स्थिति से उबरकर आज विकास की राह पर है. भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक मजबूत कानून यानी जनलोकपाल के लिए आन्दोलन कर रहे अन्ना के पीछे खड़े होने का चौथा कारण है राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रश्न की जो कार्य हमारे एक-दो शहरों या प्रदेशों जितने बड़े राष्ट्र कर सकते हैं...उसे करने में विश्वगुरु रहा भारत असमर्थ है क्या ?



भारत के में भ्रष्टाचार के निर्मूलन के लिए कई सरकारी संस्थाएं हैं, जैसे - सी.बी.आई., सेंट्रल विजिलेंस कमीशन और ऐसी ही राज्यों की संस्थाएं आदि. लेकिन, इनकी सबसे बड़ी दिक्कत है इन पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण और इनके बंधे हुए हाथ और आँखें. आपको जानकर आश्चर्य होगा की यदि सी.बी.आई. को किसी मंत्रालय में भ्रष्टाचार की जांच करनी हो तो उसे पहले अनुमति लेनी होगी, वो भी किसकी...? खुद उस मंत्रालय के मंत्री की ! यानी यदि सी.बी.आई. को दूरसंचार मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले की जांच करनी हो तो वह तब तक नहीं कर सकती जब तक स्वयं ए.राजा उसे अनुमति न दे. सी.वी.सी. का कुल स्टाफ दो सौ बत्तीस लोगों का है, और उसके जिम्मे 1500 सरकारी विभागों के चालीस लाख से अधिक कर्मचारियों के ऊपर निगाह रखने का कार्य है. केंद्र और राज्य सरकार की अधिकांश जांच एजेंसियों की समस्या यह है की वे सीधे मुक़दमा दायर कर गिरफ्तारी नहीं कर सकतीं. ज़्यादातर जाँच एजेंसियां सिर्फ "सलाह" दे सकतीं हैं की अमुक अधिकारी को बर्खास्त किया जाए अथवा उसको गिरफ्तार किया जाए. लेकिन उनकी इस "सलाह" का असर कितना होता है ये जानने के लिए सी.वी.सी. जैसी दिग्गज संस्था का सफलता रिकॉर्ड जानना काफी है - शून्य. आपको जानकार दुःख होगा कि जांच एजेंसियों द्वारा छापे में कई करोड़ रुपयों की नगदी के साथ पकडे गए कई अधिकारी आज भी बदस्तूर नौकरियां कर रहे हैं और जनता को दोगुनी रफ़्तार से लूटने में लगे हैं, क्योंकि जांच एजेंसियों द्वारा बर्खास्त करने की "सलाह" के बाद सम्बंधित मंत्रियों ने उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया. श्री अन्ना हजारे के हाथ मजबूत करने का पाँचवाँ कारण है देश की ज़रूरत भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कम-से-कम एक एजेंसी की ज़रुरत जो सरकारी शिकंजे से मुक्त हो, अधिकार और साधन संपन्न हो. एक ऐसी एजेंसी जो देश में भ्रष्टाचार मिटने के एक मात्र उपाय, भ्रष्ट मंत्रियों और अफसरों को जेल पंहुचाने में सक्षम हो. क्योंकि जब तक एक कड़ा कानून ऐसी एजेंसी अस्तित्व में नहीं आती तब तक इंसान तो क्या भगवान भी देश से भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकते.



देश की संसद में सजायाफ्ता और कई संगीन अपराधों के आरोपियों का प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है. भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे सांसदों-मंत्रियों का प्रतिशत भी उच्च है. एक अनुमान के अनुसार कड़ा भ्रष्टाचार विरोधी कानून जैसे अन्ना हजारे का "जन लोकपाल " आधे से अधिक वर्तमान राजनेताओं को जेल या फिर घर बैठा देगा. यही कारण है कि देश पर एक बेहद सीमित दायरे वाला और बिना अधिकारों वाला सरकारी लोकपाल कानून थोपने की तैयारी की जा रही है. सरकार की मंशा अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों द्वारा तैयार ड्राफ्ट को कूड़ेदान में डालने से ज़ाहिर हो जाती है. सरकारी लोकपाल यदि कानून बनता है तो टू जी स्पेक्ट्रम, आदर्श घोटाला, राष्ट्रमंडल घोटाला आदि जांच के दायरे बाहर होंगे. पंचायतों और नगरपालिका-स्थानीय समितियों के भ्रष्टाचार की जांच नहीं हो पायेगी, आम आदमी तो रिश्वतखोरी की शिकायत नहीं कर पायेगा नहीं निर्धारित समय के भीतर काम न करने वाले अधिकारीयों पर कार्यवाई हो पायेगी. करोड़ों मध्यम और निम्न श्रेणी के अधिकारी और कर्मचारी भी दायरे में न होंगे. संक्षेप में यह एक पूरी तरह लाचार और पंगु कानून होगा. श्री अन्ना हजारे जैसा गांधीवादी व्यक्ति सरकारी लोकपाल विधेयक की प्रतियाँ जलाने पर मजबूर यूँ ही नहीं हुआ होगा. श्री हजारे के साथ सात दिन के लिए सरकारी लोकपाल बिल का विरोध करने का छठवां कारण है लगभग सभी दलों द्वारा एकमत होकर थोपा जा रहा लचर सरकारी लोकपाल. यदि एक बार यह बिल पास हो गया हो गया तो तमाम अपराधी जेल के पीछे नज़र आने की बजाय बेफिक्र होकर देश को लूटते नज़र आयेंगे.



देश के चुनावों में आज इतना अधिक धन लगता है कि कोई आम शरीफ व्यक्ति चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता. यही कारण है की देश की संसद बाहुबलियों और धनाड्यों से भरी नज़र आती है. जन लोकपाल विधेयक काले धन को रोककर चुनावों को आम ईमानदार आदमी के लड़ने योग्य बनाने की और एक कदम होगा. भ्रष्टाचार के "जीरो रिस्क, फुल रिटर्न" का व्यवसाय बनने से भी राजनीति में आने की होड़ लगी है जो "जन लोकपाल" से घटेगी. अच्छे और सेवाभावी लोगों के आने से देश की संसद का असर बढ़ेगा तथा देश को वो नेतृत्व संसद द्वारा मिल सकेगा जो विश्व महाशक्ति के रूप में देश के लिए ज़रूरी है. भारत का युवा इस बात को अच्छी तरह से महसूस करता है तथा इसी कारण आज अन्ना की एक आवाज़ करोड़ों देशवासियों की आवाज़ बन गयी है. देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए इससे अच्छा मौका और नेता पता नहीं फिर कब मिले. यह आन्दोलन, जिसे श्री अन्ना हजारे आजादी की दूसरी लड़ाई कहते हैं, आज एक निर्णायक मोड़ पर है. आज देश के लिए सात दिन निकलकर हम देश की सबसे बड़ी आतंरिक समस्या से निपटने में अपना योगदान दे सकते हैं. श्री अन्ना हजारे के कहने पर सात दिन देश के लिए निकालने का सातवाँ कारण है इस सुनहरे मौके का पूरा लाभ उठाना. स्वतंत्रता दिवस के अवकाश के बाद अखबार जब आपके हाथ में आयेंगे तब तक अन्ना का आन्दोलन प्रारंभ हो चुका होगा. तो आप आज ही तय कर लीजिये - सोलह अगस्त से सात दिन देश के लिए अन्ना के नाम

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