घटाटोप अँधेरे में जब भी आसमान पर बिजली चमकती है लगता है यह मन फ़िर उचाट हो रहा है दूर दूर तक सिर्फ एक अन्धेरा और कही चमक और फ़िर बहुत देर बाद आवाज की झनझनाहट सुनाई देती है सिर्फ एक ही क्षण की बात लगती है इस पार और उस पार में लगता है सब बाँट दू और इस अंधेरी सुरंग में अज्ञात प्रवास पर निकल पडू क्योकि अब समय आ गया है चेतना विलुप्त हो रही है सघनता बढ़ रही है विरलता का कोइ नामोनिशान नहीं है और एक खुमारी बस स्वप्न और उमंगें हिलोरे ले रहे है उस पार की कशिश बरकरार है(मन की गांठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
Comments