सनातन धर्म में एकादशी का बड़ा महत्त्व बताया गया है सबको करना चाहिए, माह में दो बार उपवास करने से शक्ति मिलती है ऐसा कहकर वो दिन में चार पांच बार केले, अनार, खीरा और काजू बादाम खाता था, आते ही अगरबत्ती से अपने कमरे को महकाता और फ़िर देर तक पूजा पाठ, भक्तिभाव से आरती का गायन सबको मंत्रमुग्ध कर देता था. हाँ इस बीच लगातार नजर रहती थी कि कौन सा सरपंच आया है और उसके पास किस निधि की कितनी राशि की स्वीकृती है बस प्रसाद ऐसे ही आता था जो सबमे बाँट जाता बाकी घर पर जाता जो किसी और शेप में होता था(प्रशासन पुराण 18)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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