उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
जिंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगे उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने पे दो गज़ ज़मीं बाँध कर
आसमानों का ज़र्फ़ आजमाया करो
चाँद सूरज कहाँ अपनी मंजिल कहाँ
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो ..
-राहत इन्दोरी
खर्च करने से पहले कमाया करो
जिंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगे उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने पे दो गज़ ज़मीं बाँध कर
आसमानों का ज़र्फ़ आजमाया करो
चाँद सूरज कहाँ अपनी मंजिल कहाँ
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो ..
-राहत इन्दोरी
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