प्रदेश के नवाचारी और युवा बेरोज़गार जिन्हें बहुत मशक्कत के साथ सर्कसनुमा लंबा प्रशिक्षण देकर नए काम के लिए प्रदेश के कई जिलों में रखा था, के कामो का रिव्यू हो रहा था. अचानक किसी ने कह दिया कि सरकारी काम और इस तरह के काम में बहुत गेप है बस सब चिल्लाने लगे है गेप है, गेप है, गेप है, फ़िर क्या था बस सभी काम धाम छोडकर गेप की बातें करने लगे और फ़िर कहा कि देखो कितना गेप है हमारे संस्कारों में, कितना गेप है घर के खाने में और इस होटल के सड़े खाने में, कितना गेप है सुविधाओं में और भ्रष्टाचार में मिली सुविधाओं में, कितना गेप है प्रशासनिक अधिकारियों और हमारे रुतबे में, बस अन्तराष्ट्रीय संस्था के लोगों को तो गेप नजर आने लगा फ़िर किसी युवा ने छेड़ दिया कि आपको तो टेक्स फ्री तनख्वाह मिलती है तो वे सब एकदम संगठित हो गए कहने लगे आप लोग गेप की बातें करने आये है या काम का रिव्यू करने....( प्रशासन पुराण 34)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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