तुम्हारे ......... लिए सुन रहे हो..........कहा हो .............तुम.......
तन्हाई जब मुकद्दर में लिखी थी ,
तो क्या शिकायत अपनों बेगाने से ,
हम मिट गए जिनकी चाहत में ,
वो बाज़ नहीं आते हमे अजमाने से .
हमने दुनिया छोड़ दी उनकी खातिर ,
और वो इंकार कर गए हमे अपनाने से ..
अगर खुदा मिले तो मांग लू दुआ उससे ,
मोहब्बत ही मिटा दे इस ज़माने से ..
जिंदा लाश कभी दर्द महसूस नहीं करती ,
चलती थी साँस मेरी उसके आने से .
मैंने कभी लिखा नही था दर्द मैं ,
बस कलम चल पड़ी उसका ख्याल आने से .!
तन्हाई जब मुकद्दर में लिखी थी ,
तो क्या शिकायत अपनों बेगाने से ,
हम मिट गए जिनकी चाहत में ,
वो बाज़ नहीं आते हमे अजमाने से .
हमने दुनिया छोड़ दी उनकी खातिर ,
और वो इंकार कर गए हमे अपनाने से ..
अगर खुदा मिले तो मांग लू दुआ उससे ,
मोहब्बत ही मिटा दे इस ज़माने से ..
जिंदा लाश कभी दर्द महसूस नहीं करती ,
चलती थी साँस मेरी उसके आने से .
मैंने कभी लिखा नही था दर्द मैं ,
बस कलम चल पड़ी उसका ख्याल आने से .!
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