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प्रशासन पुराण 36

नया युवा अधिकारी था और देश भर के बेरोज़गारों को पछाडकर अपनी योग्यता के बल पर इस सेवा में आया था करोडो की बेशकीमती जमीन, दहेज में मिले लाखों रूपये, मकान और अजब गजब के इलेक्ट्रानिक उपकरणों यानिकी गजेट्स इस्तेमाल करने वाला बेहद प्रतिभाशाली था वो- जिसके पास दृष्टि और मिशन दोनों था. उस दिन राजधानी में वो देश के गरीबों का एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर रहा था, बड़ी अकादमी थी बड़े लोग और बड़े ताम झाम बड़े ऐसी भी लगे थे, प्रदेश के गरीबों के बारे में बोलते हुए उसके तर्क अकाट्य थे तेंदुलकर समिति से लेकर भोजन के अधिकार वालो तक को कोट करते हुए उसने आंकड़ों का जमकर जाल बुना था फ़िर अचानक उसने प्रदेश के गरीबों के लिए "गरीब सम्मलेन" का नुस्खा दिया जिसमे सभी नंगें भूखे गरीबों को इकठ्ठा किया जाए और पूछा जाए कि उनसे कि वो गरीब क्यों रहना चाहते है और फ़िर हर जिले में गरीब सम्मलेन आयोजित करने का जोरदार बजट बताया, कहा कि इस सारे का वीडीओ बनाना भी जरूरी है ताकि विदेशी संस्थाओं से भी जिलों को सीधे अनुदान मिल सके, बेहद प्रभावी था गरीब सम्मलेन का विचार!!! सवाल यह था कि सिर्फ गरीबी का टेग लगे लोग ही इसमे आ पायेंगे हाँ दूसरे बड़े जिम्मेदार लोग इस होनहार को आने वाले समय में नौकरी से इस्तीफा देकर सत्तावान पार्टी का भावी केंडीडेट मानने लगे थे( प्रशासन पुराण 36)

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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