राकस्टार देखकर आ रहा हूँ अदभुत फिल्म बस फराज साहब का एक शेर याद आ गया बस सन्दर्भ थोड़े अलग है.............
इस दफा बारिश रूकती ही नहीं फराज,
हमने आंसू क्या पीये कि सारा मौसम रो पड़ा.............
काश कि ज़िंदगी एक रॉक स्टार हो पाती और दुःख इस करीने से फूट पडता तो शायद अपने सच्चे दुःख छूपाने के लिए कही और से, किसी और तरीकों से, और मन के किसी निर्जन कोने में नहीं जाना पडता............एक अदभुत फिल्म जिसे बस सिर्फ देखा जा सकता है महसूसा जा सकता है और एकाकी मन के साथ गुँथा जा सकता है कि अब कोई ठोस निर्णय लों बहुत हो चुका घर आ जा परिंदे .
चल खुसरो घर आपने रैन भी चंहुदेस...........कागा सब तन खईयो .दो नैना ना खाईयो पीया मिलन की आस...........
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