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मन लागो यार फकीरी में.............

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
वो बहुत देर से मिला है मुझे
-अहमद फ़राज

राकस्टार देखकर रहा हूँ अदभुत फिल्म बस फराज साहब का एक शेर याद गया बस सन्दर्भ थोड़े अलग है.............
इस दफा बारिश रूकती ही नहीं फराज,
हमने आंसू क्या पीये कि सारा मौसम रो पड़ा.............

काश कि ज़िंदगी एक रॉक स्टार हो पाती और दुःख इस करीने से फूट पडता तो शायद अपने सच्चे दुःख छूपाने के लिए कही और से, किसी और तरीकों से, और मन के किसी निर्जन कोने में नहीं जाना पडता............एक अदभुत फिल्म जिसे बस सिर्फ देखा जा सकता है महसूसा जा सकता है और एकाकी मन के साथ गुँथा जा सकता है कि अब कोई ठोस निर्णय लों बहुत हो चुका घर जा परिंदे .
चल खुसरो घर आपने रैन भी चंहुदेस...........कागा सब तन खईयो .दो नैना ना खाईयो पीया मिलन की आस...........रॉक स्टार -यह फिल्म नहीं एक हकीकत है जो बिरले लोग ही महसूस कर सकते है और फ़िर इसे गुनना, बुनना और उस चरित्र के साथ गूँथ पाना जिसे कबीर कहता था प्रीतम हम तुम एक है...............या कबीरा सोई पीर है जो जाणे पर पीर...........बस एक बार एकाकार हो जाए उस चरित्र के साथ और पूरी व्यवस्था के चक्रव्यूह को समझने की कोशिश करे तो लगेगा कि हम कहा जा रहे है हमारा महबूब तो एक दरवेश के रूप में हमारे अंदर बसा है और हम सच में ढून्ढ रहे है उसे ....मजा आ गया मन लागो यार फकीरी में.............

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