संबोधि के छह साल बाद जब बुद्ध गृहनगर लौटे थे, तो उनके प्रभाव में आकर कई राजपुत्रों ने महल छोड़ संन्यास ले लिया था. उन्हीं में गौतम के बेटे राहुल भी थे. उन्हीं के साथ गौतम के छोटे चचेरे भाई अनिरुद्ध ने भी महल छोड़ दिया था.
अनिरुद्ध, शाक्यमुनि के सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से थे. शुरुआत के किन्हीं दिनों में एक बार श्रावस्ती में हो रही सभा में बुद्ध के वचन सुनते हुए अनिरुद्ध को झपकी लग गई. वह झूमते हुए गिरने लगे. उनकी झूम देख बुद्ध ख़ामोश हो गए. वरिष्ठ भिक्खुओं ने अनिरुद्ध को जगाया और उन्हें ख़ूब डांटा.
अनिरुद्ध अपनी नींद से इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने उसी पल क़सम खाई, आज के बाद कभी बुद्ध की उपस्थिति में नहीं सोऊंगा. इस क़सम से भी आगे बढ़कर उन्होंने अपनी नींद को पूरी तरह त्याग दिया. उस दोपहर आई हल्की झपकी के बाद अनिरुद्ध ताउम्र नहीं सोए. खुद शाक्यमुनि ने उनके कक्ष की ओर जाकर कई बार अनुरोध किया, लेकिन अनिरुद्ध की आंखें प्रायश्चित के आंसुओं से नहीं, प्रायश्चित की जाग से भरी रहीं.
बरसों न सोने के कारण एक दिन अनिरुद्ध ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी. ग्रंथ कहते हैं कि उसके बाद अनिरुद्ध ने भीतरी रोशनी को प्राप्त किया. 'सद्धर्म पुंडरीक सूत्र' के आठवें अध्याय के अनुसार, अनिरुद्ध, आनंद और राहुल समेत उन पांच सौ शिष्यों में से थे, जिन्होंने संपूर्ण बुद्धत्व को प्राप्त किया. वे सब बौद्ध ग्रंथों में सामंतप्रभा बुद्ध के नाम से जाने जाते हैं.
प्रायश्चित को भी बोधि-वृक्ष का समानार्थी माना जाना चाहिए.
"...एक बार ऐसा हुआ मेरी नींद उड़ गई। मेरे लिए सोना असंभव हो गया, क्योंकि मैं हमेशा अपनी देह के बारे में सोचता रहता था। यातना के उन क्षणों में मैंने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी लिखी, जो कभी अपनी स्मृतियों से छुटकारा नहीं पा सकता था। वह जो कुछ करता, उसे अपनी स्मृति का ही हिस्सा जान पड़ता था। मानो हर अनुभव स्मृति का दोहराव हो। वह व्यक्ति ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सका।"
होर्हे लुई बोर्हेस
पश्चाताप अगर बोधि का पर्याय है तो क्या निद्रा संबोधि का विपर्यय होगी?
बुद्ध और बोर्हेस दो ध्रुवांत हैं, एक के लिए समय समाप्त हो गया है, दूसरे के लिए समय एक अनंत सातत्य में है और इसीलिए उसका कोई अस्तित्व नहीं।
बोर्हेस के यहां निद्राहीनता (या बेहतर होगा अगर कहें अनिद्रा) स्मृति का नैरंतर्य और यंत्रणा है, बुद्ध के यहां निद्राहीनता बोध है।
अगर स्मरण भी मरण है तो जाग्रति भी एक गति है!
बौद्ध कथाओं को अभिधा में पढ़ने के अपने खतरे हैं। बहुत संभव है अनिरुद्ध की निद्राहीनता उसकी सूक्ष्म काया की जाग्रति हो। यह जाग्रति और चेतना ही सामंतप्रभा हो। निद्राहीनता की दीप्ति।
बहरहाल, सुषुप्ित से मुक्त होने का अनिवार्य अर्थ जाग्रति में प्रवेश करना नहीं हो सकता, वह जाग्रति से मुक्ति भी हो सकता है। वह मुक्ति से मुक्ति भी हो सकता है। तुरीय। द फोर्थ वन। द अदर वन। नेक्स्ट डोर।
अनिरुद्ध, शाक्यमुनि के सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से थे. शुरुआत के किन्हीं दिनों में एक बार श्रावस्ती में हो रही सभा में बुद्ध के वचन सुनते हुए अनिरुद्ध को झपकी लग गई. वह झूमते हुए गिरने लगे. उनकी झूम देख बुद्ध ख़ामोश हो गए. वरिष्ठ भिक्खुओं ने अनिरुद्ध को जगाया और उन्हें ख़ूब डांटा.
अनिरुद्ध अपनी नींद से इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने उसी पल क़सम खाई, आज के बाद कभी बुद्ध की उपस्थिति में नहीं सोऊंगा. इस क़सम से भी आगे बढ़कर उन्होंने अपनी नींद को पूरी तरह त्याग दिया. उस दोपहर आई हल्की झपकी के बाद अनिरुद्ध ताउम्र नहीं सोए. खुद शाक्यमुनि ने उनके कक्ष की ओर जाकर कई बार अनुरोध किया, लेकिन अनिरुद्ध की आंखें प्रायश्चित के आंसुओं से नहीं, प्रायश्चित की जाग से भरी रहीं.
बरसों न सोने के कारण एक दिन अनिरुद्ध ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी. ग्रंथ कहते हैं कि उसके बाद अनिरुद्ध ने भीतरी रोशनी को प्राप्त किया. 'सद्धर्म पुंडरीक सूत्र' के आठवें अध्याय के अनुसार, अनिरुद्ध, आनंद और राहुल समेत उन पांच सौ शिष्यों में से थे, जिन्होंने संपूर्ण बुद्धत्व को प्राप्त किया. वे सब बौद्ध ग्रंथों में सामंतप्रभा बुद्ध के नाम से जाने जाते हैं.
प्रायश्चित को भी बोधि-वृक्ष का समानार्थी माना जाना चाहिए.
"...एक बार ऐसा हुआ मेरी नींद उड़ गई। मेरे लिए सोना असंभव हो गया, क्योंकि मैं हमेशा अपनी देह के बारे में सोचता रहता था। यातना के उन क्षणों में मैंने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी लिखी, जो कभी अपनी स्मृतियों से छुटकारा नहीं पा सकता था। वह जो कुछ करता, उसे अपनी स्मृति का ही हिस्सा जान पड़ता था। मानो हर अनुभव स्मृति का दोहराव हो। वह व्यक्ति ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सका।"
होर्हे लुई बोर्हेस
पश्चाताप अगर बोधि का पर्याय है तो क्या निद्रा संबोधि का विपर्यय होगी?
बुद्ध और बोर्हेस दो ध्रुवांत हैं, एक के लिए समय समाप्त हो गया है, दूसरे के लिए समय एक अनंत सातत्य में है और इसीलिए उसका कोई अस्तित्व नहीं।
बोर्हेस के यहां निद्राहीनता (या बेहतर होगा अगर कहें अनिद्रा) स्मृति का नैरंतर्य और यंत्रणा है, बुद्ध के यहां निद्राहीनता बोध है।
अगर स्मरण भी मरण है तो जाग्रति भी एक गति है!
बौद्ध कथाओं को अभिधा में पढ़ने के अपने खतरे हैं। बहुत संभव है अनिरुद्ध की निद्राहीनता उसकी सूक्ष्म काया की जाग्रति हो। यह जाग्रति और चेतना ही सामंतप्रभा हो। निद्राहीनता की दीप्ति।
बहरहाल, सुषुप्ित से मुक्त होने का अनिवार्य अर्थ जाग्रति में प्रवेश करना नहीं हो सकता, वह जाग्रति से मुक्ति भी हो सकता है। वह मुक्ति से मुक्ति भी हो सकता है। तुरीय। द फोर्थ वन। द अदर वन। नेक्स्ट डोर।
- Get link
- X
- Other Apps
Comments