पुरे प्रदेश के लोग इकठ्ठे थे बेहद जिम्मेदार और गंभीर काम करने वाले- आंकड़ों पर, रणनिती पर, नीति निर्धारण वाले लोग थे और जमकर रूपया भी था इनके पास, सौ - पचास लोगो को रोज़गार देना साल दो साल के लिए और फ़िर काम के बाद निचोडकर फेंक देना इनकी मास्टरी थी, इस तरह के काम में गजब का हूनर और दक्षता थी इनकी. खूब जमकर काम करते घूमते फिरते थे, रोज का भत्ता भी बड़ा भारी था, बहरहाल ये लोग एक बार इकठ्ठा थे और पुरे प्रदेश के लिए रखे भाड़े के लोग मौजूद थे बैठक में फ़िर ना जाने क्यों कही जाने की बात निकली फ़िर होटल , कमरे, बिस्तर, सफाई, भोजन और फ़िर कमरों के पर्दों और बाथरूम के फ्रेशनर्स पर जमके बातें होने लगी तीन चार लोग बहस करने लगे और फ़िर सारी बातचीत इसी बहस में उलझ गयी, एक के बाद एक सफाईयां दी जाने लगी फ़िर फ्लाईट और फ़िर ऐसी गाड़ी और फ़िर ड्राईवर की बातें होने लगी, आख़िरी में एक चाय की प्याली के साथ कुछ लोग जाने लगे और फ़िर धीरे धीर ये सब चले गए, बचे रह गए कुछ लोग जो दीवारों से बतियाते रहे और समस्या बताते बताते आपस में ही सिमट कर रह गए......चुपचाप खामोश से उठ गए वहाँ से ढेरो मुद्दे और प्रश्नों के साथ (प्रशासन पुराण 35)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
Comments