मप्र जैसे उन्नत राज्य में एक सड़क है "भोपाल होशंगाबाद" आज जब हजारवी बार उससे गुजरा तो वो वैसे ही नजर आयी -उपेक्षित, अकेली और तनहा, रोजरोज हजारों गाडिया उस पर से गुजर जाती है जगह-जगह गड्ढे, धूल- धुंआ और गर्द के बादल, बिलकुल लावारिस और हर विभाग से धोखा खाई हुई. प्रदेश में बड़े बड़े दिग्गज है जो रोज हजारों किलोमीटर सडके बनाने का दावा करते है, अपने मुखौटे लोगो को दिखाते है राजधानी में, मीडिया के तुर्रे खां है, मंत्रियों से लेकर संतरियो की बड़ी फौज है और मजेदार यह है कि माननीय मुख्यमंत्री जी की विधानसभा और गाँव का रास्ता भी वहा से होकर ही गुजरता है, साथ ही प्रदेश में पर्यटन के नाम पर आने वाले भीम बैठिका के लिए और पुण्य सलिला माँ नर्मदा नदी के लिए भी भक्तजन यही से होकर गुजरते है पर इस सड़क की सुध किसी ने नहीं ली कितने बरसो से कई सरकारें आई और गयी पर सड़क का दर्द किसी ने ना जाना. आज बहुत हताश होकर यह सड़क बोली मुझसे अब तो आत्महत्या भी कर ली, सड़क के नाम पर मेरे ऊपर कुछ डामर चिपका है और कही से सपाटता है, वरना मेरी तो मृत्यु हो चुकी है अस्तित्व ही खत्म हो गया है विकास के नाम पर सबकी पोल हूँ मै, फ़िर ये सब क्यों गुजरते है मुझ पर से...किसी को शर्मोहया है या नहीं और ऊपर से तुम भी आज जाकर फेस बुक पर मेरी बर्बादी की कहानी जग जाहिर कर दोगे पर किसी को कोई फर्क पडता है .......है कोई मध्य प्रदेश में जो बरसों से पडी मेरी बदहाली को सुधार दे, अब चुनाव की दुदुम्भी भी बजने वाली है पर किसी पार्टी ने कोई शूरवीर नहीं पैदा किया जो मुझ गरीब की हालत सुधार दे.........सड़क के दर्द को किसने जाना, बुझा, समझा और महसूसा है.....काश सडके भी वोट देने का अधिकार रखती तो यही कद्दावर नेता और उनके चंगु- मंगू गिरते पड़ते मेरे पास आते और फ़िर.......खैर समय बड़ा बलवान.....प्रदेश का भला चाहने वाले तो कही और अर्जुन की भाँती निशाना लगाए बैठे है लोगो का और संसाधनों का जो नुकसान हो रहा है उसे किसी की परवाह है ???? ( प्रशासन पुराण 37)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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