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सन्दर्भ - म् प्र स्थापना दिवस 01 नवंबर 2011

पचपन वर्षों बाद भी यदि किसी प्रदेश की हालत पतली रहे और जन प्रतिनिधि जनता के बजाय अपनी व्यक्तिगत छबि सुधारने की कोशिश में रहे, या आपस में ही कुर्सी के लिए लड़-भिड रहे हो तो क्या स्थापना और क्या निर्वाण दिवस......सरकार नाम का तंत्र तो खत्म ही हो गया है और राज्य ने अपनी भूमिका को भी नकार दिया है, रहा सवाल प्रशासन का तो वे लिप्त है गले गले तक कमाने- धमाने में, सारे प्रदेश में भ्रष्ट और गैर जिम्मेदार लोगो का राज और जनता में त्राहि त्राहि मची है सड़क बिजली पानी के नाम पर इस प्रदेश में सरकारें आती जाती रहती है और नेता नर्मदा नायक बन् जाते है या काका-मामा!!! गांव शहर, उद्योगपति से लेकर आदिवासी, झुग्गी से लेकर बंगलो तक के लोग यदि बेहाल रहे तो कैसा देश-कैसा प्रदेश बस एक हफ्ते की बाजीगरी और सरकारी भाषा में कुछ आयोजन जिनके बिल का पेमेंट भी जिलाधीशो के भरोसे आगामी चाह महीनों तक नहीं होगा, हाँ बेचारे बच्चो पर गाज गिरेगी रैली और ना जाने क्या बकवास झेलेंगे....अब तुम बोलो कौनसा प्रदेश है जो आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है सवाल दस करोड का है....

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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