पचपन वर्षों बाद भी यदि किसी प्रदेश की हालत पतली रहे और जन प्रतिनिधि जनता के बजाय अपनी व्यक्तिगत छबि सुधारने की कोशिश में रहे, या आपस में ही कुर्सी के लिए लड़-भिड रहे हो तो क्या स्थापना और क्या निर्वाण दिवस......सरकार नाम का तंत्र तो खत्म ही हो गया है और राज्य ने अपनी भूमिका को भी नकार दिया है, रहा सवाल प्रशासन का तो वे लिप्त है गले गले तक कमाने- धमाने में, सारे प्रदेश में भ्रष्ट और गैर जिम्मेदार लोगो का राज और जनता में त्राहि त्राहि मची है सड़क बिजली पानी के नाम पर इस प्रदेश में सरकारें आती जाती रहती है और नेता नर्मदा नायक बन् जाते है या काका-मामा!!! गांव शहर, उद्योगपति से लेकर आदिवासी, झुग्गी से लेकर बंगलो तक के लोग यदि बेहाल रहे तो कैसा देश-कैसा प्रदेश बस एक हफ्ते की बाजीगरी और सरकारी भाषा में कुछ आयोजन जिनके बिल का पेमेंट भी जिलाधीशो के भरोसे आगामी चाह महीनों तक नहीं होगा, हाँ बेचारे बच्चो पर गाज गिरेगी रैली और ना जाने क्या बकवास झेलेंगे....अब तुम बोलो कौनसा प्रदेश है जो आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है सवाल दस करोड का है....
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