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Nityanand Gayen एक बार फ़िर.......

Nityanand Gayen एक बार फ़िर.......

तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों की आखरी दिवाली पर
तुमने दिया था जो घड़ी मुझे
आज भी बंधता हूं उसे
मैं अपनी कलाई पर
घड़ी - घड़ी समय को देखने के लिए

उस घड़ी में
समय रुका नही कभी
एक पल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद भी
निरंतर चलती रही
वह घड़ी
समय के साथ अपनी सुइओं को मिलाते हुए
घड़ी की सुइओं को देखकर
मैंने भी किया प्रयास कई बार
उस समय से बाहर निकलने की
जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे अकेला
समय के साथ
किन्तु सिर्फ समय निकलता गया
और
मैं रुका ही रह गया
वहीँ पर
निकल न पाया
वहां से अब तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
मुझे नही पता तुम्हारे घड़ी के बारे में
क्या वह भी चल रही है
तुम्हारे साथ
तुम्हारी तरह ?
कितनी दूर निकल गई हो
कभी देखा है
पीछे मुड़कर ?
जनता हूं
आगे निकलने की चाह रखने वाले
कभी मुड़कर नही देखते पीछे
पर मुझे लगता है
कभी -कभी अकेले में
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों के बीच की .

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