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कैसा और किसका गणतंत्र ?

परेड देखकर थोड़ा सा रोम्मंचित तो हो ही जाता हूँ खासकरके भ्रष्ट फौज में कुछ लोग जब इस देश नामक चिड़िया पर अपनी जान दे देते है..........और ये युवा अधिकारी अपने पीछे छोड़ जाते है बिलखते परिजन और असीम भावनाएं..............और देश एक तमगे के अलावा क्या देता है अपनी पेंशन लेने के लिए भी इन्हें कितनी मुसीबते झेलना पडती है यह अकथनीय है...........देश .............अरे कहा है वो देश और कहा है वो लोग.......कैसा और किसका गणतंत्र .?
दिल्ली तो दिल्ली है इस शहर ने जितना देश का भला किया उससे ज्यादा नुकसान भी किया है सौ बार उजडने के बाद फ़िर फ़िर बसी और बाकी पुरे हिन्दुस्तान को उजाडा है............और सरे लोग आतंकित है यहाँ के बाशिंदों से और यहाँ की फिजाओं से...............राजपथ और अपने ताकत का गुमान, दर्शक दीर्घा में बैठे लोग और इसा सबके बीच नेताओं का हुजूम बस यही सब रह गया है गणतंत्र के नाम पर और हम जैसे लोग सिर्फ तुक्र टुकुर देखते रहते है दिल्ली की और............बोल दिल्ली तू क्या कहती है..
गणतंत्र दिवस के पहले तो कोई संदेश नहीं आये, सारे दोस्तों को इसकी याद नहीं रहती............नए साल के सन्देश पच्चीस दिन पहले आ जाते है .............
बहुत ही कमीनी मानसिकता है हमारी देश याद नहीं रहता........

खैर............छोडो ना क्या सुबह सुबह मै भी दुखडा ले बैठा........

"वेलेंटाइन दिवस" की सबको अग्रिम शुभकामनाएं............


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