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श्याम बहादुर नम्र का यु अचानक गुजर जाना .............


अभी जैसे कल ही की बात हो............अनिल सदगोपाल के साथ नम्र जी ने छतीसगढ़ के कर्मयोगी शंकर गुहा नियोगी पर एक पूरी किताब लिखी थी, मेरे पास भेजी थी कि इसकी समीक्षा लिखनी है- मैंने लिखी और वो हंस में छपी..........फ़िर मिलना जुलना, हंगर प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने दो छोटी पुस्तिकाएं लिखी, देवास में वत्सल की शादी में अमन और अनुराग के साथ आये थे, फ़िर नर्मदा पर धाराप्रवाह कविता......जब भी चचाई जाता तो उनसे मिलकर आता था विदूषक कारखाने में, भोपाल में अक्सर मिल जाते थे ..........यकायक ये अवसान की खबर कहा से छप गयी.........ये मौत का छल है और बेहद गंभीर अपराध!!! नम्र जी को अभी कितना लिखना था, काम करना था...... हाल ही मिले थे तो कह रहे थे कि संदीप पंचायत पर कुछ और तीखा लिखने का इरादा है और जिस तरह से तंत्र ने पंचायतो को दर किनार करके अपनी सत्ता की सदगति या दुर्गति की है उस पर लिखना चाहता हूँ तो मैंने कहा था कि जरूर लिखिए .........पर आज ये मनहूस खबर कहा से गयी...........यकी ही नहीं हो रहा...........नम्र जी के इस साल के शुरू में चला जान बेहद खलेगा क्योकि बेबाकी से अपनी बात और खरी-खरी कहने वाला हमेशा के लिए चला गया....अमन और पुरे परिवार के साथ हम सब है पर अब नम्र जी नहीं है यह शायद इस साल के शुरुआत की सबसे बुरी खबर है........नमन ........अश्रुपुरीत श्रद्धांजलि ...कहा है ऐसे लोग.............और ऐसे कर्म योगी............

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