ये शहर जिसका नाम देवास है, इसके गली मोहल्ले कितने बदल गए है, वो चौबारे भी अब खत्म हो गए है जहां मै पला बढ़ा और अब देहलीज से निकल कर अपनी मंजिल की ओर हूँ......हर बार आता हूँ तो एक किसी जगह पर मृत्यु पर संवेदनाएं व्यक्त करने जाना ही पडता है अपने परिचित लोग धीरे धीरे खत्म हो रहे है वो लोग जिनके साये में मै बड़ा हुआ या साथ के लोग जिनके साथ एक साझी विरासत शेयर की थी, या वो लोग जो मेरे सामने पैदा हुए, बड़े हुए और बस स्थापित हो ही रहे थे दुनियादारी सम्हाल ही रहे थे कि काल के विशाल गाल में समा गए.....निश्चित ही मुझे शिकायत है इस शहर से --क्यों लील रहा है इन अबोधो को, अभी अभी एक पुराने मठकरी परिवार में होकर आ रहा हूँ जहां मौत ने एक स्टेप आगे बढ़कर उनकी बेटी को छीन लिया....मौत का क्रन्दन और जीवन पर मौत का परिहास मेरे कानो में गूँज रहा है. शहर में अट्टालिकाएं खडी हो गयी है गाड़ी घोड़े बढ़ गए है, युवाओं के चेहरे की दमक और लक-झक भी बढ़ गयी है पर एक चिर शान्ति मुझे कही दिखाई नहीं दी.हडबड़ाहट है पता नहीं ये कस्बे को क्या हो गया है जीवन में मजे ले लों की तर्ज पर सब कुछ चल रहा है जो गलत नहीं है बस अपने आप को इन सबसे जुदा पा रहा..यह वैराग्य है, मतिभ्रम या मोह भंग.....या मै पीछे हूँ बहुत पीछे .....पता नहीं पर अब अपना कस्बा अपना नहीं लगता अपनी पहचान बताना अपने आप को सबसे बड़ी पीड़ा है........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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