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Nityanand Gayen के ब्लॉग से

मेरा वजूद
मैं नही चाहता
मरने के बाद
अपनी चर्चा तुम्हारी
किसी महफिल में
जीते जी थोड़ा मिल जाये
वही बहुत है
आधी उम्र तो
बीत चुकी है
जीने की लड़ाई में
बस मान लो इतना
कि मैं भी इन्सान हूँ
यही बहुत है
यही मेरा वज़ूद है


तुम्हारा पता
मेरे पास नहीं है
तुम्हारा पता
और मुझे
खुद का खबर नहीं
पर मैं खोया हुआ नहीं हूँ
ज़मीन की बात है
हूँ कहीं इसी जमीं पर
ख़ोज सको तो ख़ोज लो
देर होने से पहले ........

दरारें
दरारें बहुत घातक होती है
चाहे कहीं हो
दीवार में
या रिश्तों में
बालू -सीमेंट भर सकती हैं
दीवार की दरारें
किन्तु -
रिश्तों की दरारें
नही भरती किसी भी सीमेंट से
बचा के रखिये
रिश्तों को --
हर दरार से ...........
वादे
सारे वादे तुम्हारे
मैंने रख दिया है
दिल की किताब में

सूख चुके हैं
सभी वादे
किताब की फूल की तरह
छूने से डरता हूं
टूट न जाये कहीं.........

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