Skip to main content

उसकी किरचिया धूप में ढून्ढ सकू.........

Ajay Singh बहुत पुराना जिगरी, यार, दोस्त और सखा आज उससे मिला, उसके आलीशान घर में बीबी बच्चो के साथ, कहने लगा कि तू तो साधू हो गया है मै सिर्फ हंस दिया...............क्या कहता..........दुनियावी पैमाने में अनफिट और मोह माया से दूर, ना कुछ पास में ना कुछ हाथ में बस एक छः फीट लंबी जुबान और थोड़ी बहुत अक्ल जिसके सहारे गुजर बसर चल रही है और शायद थोड़ी सी बेहतर सम्प्रेषण क्षमता वो हिन्दी, मराठी और अंगरेजी में- सरकारी स्कूलों में पढ़ी हमारी पीढ़ी के पास यह एक लगभग असेट ही है जिसके सहारे जीवन चल रहा है..धन दौलत, वैभव विलास और अकूत संपत्ति तो है नहीं........कई बार लगता है कि अभी भी समय है कि दुनियावी पैमानों में फिट हो जाऊ और फ़िर से एक नया जीवन शुरू करू और सब कुछ हासिल कर लू पर वो सब कुछ है क्या.........धन दौलत, मोटर गाड़ी, बँगला, पद-प्रतिष्ठा-पैसा या कुछ और.......पता नहीं !!! थोड़े से गुनगुने पछतावे तो जरूर है पर बहुत ज्यादा पश्चाताप नहीं है-- जो है सब ठीक ही है...शायद इससे बेहतर कुछ हो सकता था, पर अब तो यह मानने लगा हूँ कि जो घर जाले आपना चले हमारे साथ!!! मेरे साथ के ही कॉमरेडो ने चल-अचल संपत्ति इकट्ठा कर ली है और अभी भी वामपंथ के गुण गाते है, ये धार्मिक किस्म के कामरेड समाज में बड़ी हैसियत रखते है........अपुन तो बाहर ही अच्छे सबसे दूर और सब से मुक्त..........और फ़िर समय भी कितना बचा है नया शुरू करने के लिए तो बहुत हिम्मत चाहिए होती है ना और अब नए सिरे से शुरू करने का जोखिम अपने सिद्धांतों को त्याग कर नहीं कर सकता भले ही "सांसारिक इंडीकेटर" पर मै फ़ैल शख्स हूँ.......आज जब सूर्य देव एक नए सफर की शुरुआत कर रहे है तो सोचता हूँ कि थोड़ा ठहर कर सोचू तो सही और फ़िर दिन भी लंबे हो जायेंगे ताकि सूरज के उजाले में कुछ जीवन जो यहाँ वहाँ बिखर गया है उसकी किरचिया धूप में ढून्ढ सकू.........

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...