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(जिंदगी के प्रवचन - अपनो से दुखी होकर......)

दुःख तो अपने से ही आता है हम ही पाल लेते है सारे दुखो को, वासनाओं को और दुर्व्यसनो को, हम ही कहते ये मेरा, ये तेरा और हम ही खोलते है बंधन आत्मा के जो हमें मनुश्यतर होने से बांधते भी है और तोडते भी है....... हम ही गले लगाते है दुखो को और हम ही रोते है कि ये बंधन छूटते नहीं, टूटते नहीं..........पाला भी हमारा और साँसे भी हमारी, बस इसी सबसे बचना है.....यही से एक मासूम सी दिखने वाले मुस्कराहट से बचना है, एक तंतुनुमा बांटने वाली मेधा से बचना है- जो हमें इस पार से उस पार ले जाने का गहरा मुगालता भी देती है और भिन्न प्रकार से आचरण करना भी सिखाती है...... बचो समय बड़ा विचित्र है, घोर कलयुग है अपने ही अपने नहीं रह रहे तो गैरो पर कैसे यकीन करे कि ये भवसागर की वैतरणी को पार लगाएंगे.......इसलिए कहता हूँ कि बचो, सबसे बचो, मोह माया से बचो और बचा सको तो उन्हें भी मुक्त कर दो जो बंधन में है, और उन्हें भी बचाने का मौका दो...........बचो, बचो, बचो ........

(जिंदगी के प्रवचन - अपनो से दुखी होकर......)

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

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शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...