मप्र जैसे गरीब राज्य में जिस तरह से रोज भ्रष्टाचार के किस्से सामने आ रहे है और दूसरे, तीसरे और चौथे दर्जे के कर्मचारी पकड़ा रहे है वो बेहद चिंतनीय है, हो सकता है कि जोशी दंपत्ति और योगीराज जैसे शूरवीरों को पकडने के बाद लोकायुक्त की नजर प्रशासन सेवा पर नहीं पड़ रही या पडने दी जा रही है पर जिस अंदाज में छोटे कर्मचारियों के यहाँ करोडो की अकूत संपत्ति मिल रही है वो दर्शाता है कि ये सब लोग स्थानीय नेताओं और छुटभैय्ये के हाथो बिके हुए है और आम आदमी बेहद मजबूर है....आज एक सेवानिवृत कर्मचारी ने बताया कि निम्न श्रेणी का बाबू भी रोज अपनी टेबल से तीन हजार का गल्ला रोज उठा रहा है और इसमे से वो कम से कम दो हजार अपने घर ले जा रहा है....यहाँ तक कि चपरासी भी बेहद शेर हो गए है इस तंत्र में, शर्मनाक है यह सब. जितना मै उम्मीद कर रहा था पारदर्शिता और मूल्य प्रदत्त शासन की वो उतना ही खोखला साबित हो रहा है पिछले साढ़े तीन बरसो में भ्रष्टाचार ने खासकरके सरकारी कर्मचारियों के घरों से मिली संपत्ति से पुरे प्रदेश के बजट का उद्धार हो सकता है...मुझे आजतक नहीं पता कि जोशी दंपत्ति और बाकी से बरामद रूपयों का हिसाब क्या हुआ और वो जमा पूंजी और जेवर इत्यादि कहा गए....शर्मनाक है ऐसे देश प्रदेश का नागरिक होना. एक बार मजाक में लिखा था कि मेरा भी मन है कमाने का पर अब लगता है कि सरकारी नौकरी लग जाए किसी भी तरह से....
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