(समकालीन तीसरी दुनिया का आनंद स्वरूप वर्मा द्वारा लिखा यह सम्पादकीय अन्ना परिघटना पर एक ज़रूरी और बहसतलब हस्तक्षेप है. चारों तरफ फैले समर्थन और विरोध के उन्मादी और कई बार अविवेकी धुंध के बीच यह टिप्पणी पूरी परिघटना के एक जनपक्षधर विवेचना की सार्थक कोशिश करती है)
जो लोग यह मानते रहे हैं और लोगों को बताते रहे हैं कि पूंजीवादी और साम्राज्यवादी लूट पर टिकी यह व्यवस्था सड़ गल चुकी है और इसे नष्ट किये बिना आम आदमी की बेहतरी संभव नहीं है उनके बरक्स अण्णा हजारे ने एक हद तक सफलतापूर्वक यह दिखाने की कोशिश की कि यह व्यवस्था ही आम आदमी को बदहाली से बचा सकती है बशर्ते इसमें कुछ सुधार कर दिया जाय। व्यवस्था के जनविरोधी चरित्र से जिन लोगों का मोहभंग हो रहा था उस पर अण्णा ने एक ब्रेक लगाया है। अण्णा ने सत्ताधारी वर्ग के लिए आक्सीजन का काम किया है और उस आक्सीजन सिलेंडर को ढोने के लिए उन्हीं लोगों के कंधों का इस्तेमाल किया है जो सत्ताधारी वर्ग के शोषण के शिकार हैं। उन्हें नहीं पता है कि वे उसी निजाम को बचाने की कवायद में तन-मन-धन से जुट गये जिसने उनकी जिंदगी को बदहाल किया। देश के ...
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