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Yeh Hosla Kaise Juke,
Yeh Aarzoo Kaise Ruke - 2

Manzil Muskil to kya,
Bundla Sahil to kya,
Tanha Ye Dil to Kya
Ho Hooo

Raah Pe Kante Bikhre agar,
Uspe to phir bhi chalna hi hai,
Saam Chhupale Suraj magar,
Raat ko ek din Dhalana hi hai,

Rut ye tal jayegi,
Himmat rang layegi,
Subha phir aayegi
Hoooo

Yeh Hosla Kaise Juke,
Yeh Aarzoo Kaise Ruke - 2

Hogi hame to rehmat ada,
Dhup kategi saaye tale,
Apni khuda se hai ye Dua,
Manzil lagale humko gale

Zurrat so baar rahe,
Uncha Ikraar rahe,
Zinda har pyar rahe
Hoooo

Yeh Hosla Kaise Juke,
Yeh Aarzoo Kaise Ruke

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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