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नए साल के पहले के कुछ डर

बड़े पेड़ों को देखकर खुशी तो होती है पर दुःख सालता है कि पता नहीं क्यों इनके बड़े होने में कितनी सारी चीजे लग गयी और ये अकेले ही अकेले बढ़ते गए ..........बस..........पता नहीं क्यों बड़ा होने की इच्छा ही मर सी गयी है..........

रोज रोज खिडकियां खोलकर थक गया हूँ अब खिडकियां खोलने का पूरा मकसद चाहिए............और देखते देखते साल भी खत्म हो रहा है और नया भी आ ही गया है एकदम मुहाने पर..........

लों सामने आ ही गया वो.............बस यु पहुँच जाएगा एकदम से, फ़िर सब लोगो के बीच धूम मचा देगा.........और सब पागलों की तरह झूमने लगेंगे ..........पर क्या सच में ये इतना नया है क्या सच में सब कुछ बदलेगा या सिर्फ फडफडाते हुए एक नई तारीख फ़िर से इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जायेगी....... एक केलेंडर के साथ एक नया सच और फ़िर एक नया.........पता नहीं क्यों हवाओं में ठिठुरन सी क्यूँ है आज.....

कितने लोगों से मिला हूँ इस पुरे समय में और हाँ- हाँ, तुम भी तो आये थे ........पर क्या बदला मै तो वैसा ही रहा जैसा था मुझे तो समझ नहीं आता पर तुम्हे लगा क्या कुछ................सब कहते है जीवन रोज बदलता है पर मुझे तो किचित भी एहसास नहीं हुआ आज तक........

ये जाते हुए समय की बेला है और लगता है कि आज ही सारा हिसाब कर लू...........पर तुम्ही कुछ भी याद है...............वो कहती है कि मुझे बताओ कि ये कौन नहीं सुनता, पर अब सबको कैसे बताऊ........कि.........नया साल आनेवाला है, अब तो आ ही गया, क्या इसे रोक सकते हो थोड़ी और देर के लिए............कि हम एक बार फ़िर से बात ही कर ले.............

मैंने तो अभी इसे समझा ही नही था, उस दिन उस शहर में गया था फ़िर वहाँ भी तुम आये फ़िर इस शहर में और यहाँ भी तुम आये और मै इन यादों को अभी संवारना चाहता ही था कि एकदम से किसी ने कह दिया कि ये आनेवाला है अब ..........मेरे पास तो सिवाय संताप और संत्रास के कुछ नहीं है इस को लेकर तो मै कतई भी तैयार नहीं हूँ........क्या रोकोगे इसे......ताकि मै संवार लू एक बार फ़िर से सब कुछ सहजता से ताकि ये साल मेरे मन मस्तिष्क पर ठीक से अंकित हो जाए......

बस अब तो लगता है थक सा गया हूँ............यह सब कहने की हिम्मत भी नहीं है...........क्या सब कुछ छूटकर सब कुछ फ़िर से मिल सकता है या नया शुरू करने के लिए इतना समय जिंदगी दे सकती है....कि फेयर काम कर ले अब तक को रफ काम मानकर, पता नहीं कि उहापोह में लग गया हूँ कि शायद अभी भी समय हो, पर ये साल इतनी जल्दी- जल्दी आ जाता है कि बस..........रोक लों ना इसे......थोड़ा और........

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