बहुत ताम झाम के साथ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के लोग एक माह की यात्रा पर मप्र के १३ जगहों पर दो नाटक कर रहे है सीहोर से शुरू हुई इस यात्रा में कल अन्तोन चेखोव की दुनिया नामक तीन छोटी कहानियों पर आधारित नाटक थे जो सीहोर में जन्मे रणजीत कपूर द्वारा निर्देशित थे, खुद रणजीत कपूर का इस यात्रा में होना सुकून जरूर देता है. नाटक के पूर्व बाहर मैदान में रणजीत कपूर 1963 का समय इस बदलते कस्बे में खोज रहे थे पुराने बुजुर्गो से अपने किसी ओमप्रकाश शर्मा नामक गुरूजी की बात कर उन्हें ट्रेस करना चाह रहे थे. पर नाटक बहुत ही कमजोर थे और सीहोर जैसे कस्बे में व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ नहीं और दर्शकों के नाम पर कुछ नेता और आवासीय विद्यालय के बच्चो की भीड़ जिन्हें नाटक का "न" नहीं समझता, एक लंबी यात्रा का बजट भी लंबा होगा पर नाटक के नाम पर जो उम्मीद रानावि के लोगो से थी वो बेहद मायूस कर देने वाले प्रदर्शन से मुझे दुःख हुआ. अगर रानावि का स्तर इतना खराब हो गया है तो फ़िर यह "यायावर" नामक यात्रा निकालने की जरूरत क्या थी, हम सब जानते है कि यायावार की जिंदगी और क्वालिटी बहुत ही शोचनीय होती है पर यह दंश और पीड़ा आम दर्शक क्यों झेले...............यह भी सवाल है........भोपाल में रुके ये लोग अगर यहाँ रूकते और लोगो से नाटक और कला की चर्चा करते तो शायद कुछ नाटक और कला का भला होता पर दिल्ली के लोग, माहौल और सुविधाओं में जीने वाले सीहोर की गंदी गलियों में क्यों भला रूकते और चर्चा करते............रानावि को इस तरह के आयोजनों के बारे में पुनः सोचना चाहिए. कमजोर अपरिपक्व कॉसेप्ट लेकर आम लोगो तक दूरदराज तक जाना निश्चित ही बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय नहीं है.
यायावर रानावि नईदिल्ली के दूसरे दिन विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक आदमजात और रेणू की कहानी पंचलेट का प्रदर्शन था जो सिर्फ रजनी बाला गुजराल और सुनील उपाध्याय की वजह से एतिहासिक बन् गया. दोनों नाटक अदभुत थे और इन दो लोगो ने पुरे नाटक में जान डाल दी. मेरा यह मत है कि सुनील उपाध्याय जैसे कलाकार सदियों में पैदा होते है आख़िरी में उनके सम्मान में खड़े हुए बिना रहा नहीं गया......रणजीत कपूर के सधे हुए ये नाटक कल से बेहतर थे पर सीहोर में जो प्रतिसाद मिलना था वो मिला नहीं कस्बों में आज भी इस महत्वपूर्ण कला को नौटंकी कहा जाता है और बेहद घृणा के साथ देखा जाता है हालांकि आज थोड़ा बेहतर प्रदर्शन था पर अफसोस हुआ कि कलाकारों का परिचय भी नहीं कराया गया कम से कम परिचय तो होना था वो तो शुक्र था कि मैंने ब्रोशर दस रूपये में खरीद लिया था.......वरना कुछ पता ही नहीं चलता............खैर दो दिनों में नाटकों की वजह से जीवन के दो दिन ठीक ठाक से बढ़िया हो गए........
Comments