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प्रशासन पुराण 38

राजधानी से आया बड़ा अधिकारी था जब सारे काम निपट गए थ्री जिले की थ्री स्टार होटल में तो स्थानीय कार्यालय वाले को बुला लिया और दफ्तर पहुंचा, पूछने लगा कितने का स्टाफ है? जी बारह लोग है दस यहाँ है और दो ब्लोक में है, ब्लोक में कौन है, जी एक मेडम है और एक पुरुष है, अच्छा मेडम कौन है और वो ब्लोक में क्यों है उसे जिले में लाओ भाई , जी असल में उनकी अभी शादी नहीं हुई है...... अरे वाह फ़िर तो बताओ वहा का निरीक्षण करवाओ कभी, बल्कि अगले हफ्ते ही प्लान कर लों. जी साहब. अरे यहाँ टाँगे चलते है? जी.......तो आप क्या कर रहे है टाँगे वालो के लिए कोई हितग्राही मूलक योजना है? जी अभी तो नहीं है बनाते है......अरे हाँ ये रेलवे के ट्रेक तकलीफ देते है आज मेरी गाड़ी दो बार रुक गयी क्रोसिंग पर भाई सांसदों और विधायको को कहो कि वे जनभागीदारी से अंडरब्रिज बनवाएं. जी साब,छोटा अधिकारी बोल रहा था....और हाँ वो ब्लोक में कब चलना है.....क्या नाम है उस मेडम का......शादी क्यों नहीं की अभी तक..... जी पता नहीं .....सर वो विभाग को कुछ सामग्री चाहिए थी......हाँ हाँ टाँगे वालो के लिए कुछ योजना बनाओ फ़िर दे देंगे भाई...और वो ब्लोक का प्लान करो....जी.....हाँ ये सेवफल बड़ी खराब सी बदबू देते है जैसे कोई सदियों का बीमार हो.... जी साहब.....तो बिस्कुट कहा है? जी वो है ना अरे जुगतराम लाओ भाई बिस्कुट लाओ......और ये टाँगे वालो का क्या करना है इन्हें विधायक निधि से या स्वेच्छानुदान से कुछ नहीं करवा सकते क्या....... छोटा साहब परेशान था जी साहब.....देखता हूँ......(प्रशासन पुराण 38)

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही