सीहोर में आजकल एक मजेदार बात हो रही है स्थानीय कुछ युवा और लोग रोज हर दफ्तर में जाते है ठीक पौने ग्यारह बजे और अधिकारियों के कमरे में जाकर खोजते है यदि अधिकारी मौजूद है तो उसे गुलाब की कली भेंट में देते है और यदि अनुपस्थित है तो जोरदार तरीके से ढोल बजाते है. यह "जागो अधिकारी जागो " अभियान के तहत हो रहा है. बात है तो मजेदार पर बेहद गंभीर और विचारणीय है कि यदि अधिकारी ही समय पर नहीं पहुंचेंगे तो आम लोगो के काम कैसे होंगे........यह प्रयास अनुकरणीय है और यहाँ लिखने का मतलब है कि इसे दूसरे शहरों में आसानी से किया जा सकता है. कुछ एनजीओ, जो जन अभियान से जुड़े है इस प्रकार की मशक्कत कर सकते है बशर्ते उन्हें सरकार से अनुदान की कोई दरकार ना हो....सीहोर का यह प्रयोग रंग ला रहा है दिनों दिन...........जय हो.......जन लोकपाल पर शहरों में चिल्लाने वाले लोगो के लिए यह प्रयोग एक प्रमाणित प्रयोग है और इसे अमल में लाने का प्रयास करे, इसमे नागरिक सहकारी बेंक के जिलाध्यक्ष भी शामिल है जो एक युवाओं की लंबी फौज लेकर मौज कर रहे अधिकारियों के खिलाफ बिगुल फूंक रहे है
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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