शायर बशीर बद्र की ग़ज़ल जो बहुत ही मौजू है और अर्थवान भी.....................
ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गई
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई
एक मैं एक तुम एक दीवार थी
ज़िंदगी आधी-आधी बँटी रह गई
रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
मेरी पलकों पे थोडी नमी रह गई
मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गई
मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी
आते-आते इधर चाँदनी रह गई
ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गई
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई
एक मैं एक तुम एक दीवार थी
ज़िंदगी आधी-आधी बँटी रह गई
रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
मेरी पलकों पे थोडी नमी रह गई
मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गई
मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी
आते-आते इधर चाँदनी रह गई
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