हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मै नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैं हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चलें
दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे
-विनोद शुक्ल- वागर्थ जुलाई -०७ अंक १४४
व्यक्ति को मै नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैं हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चलें
दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे
-विनोद शुक्ल- वागर्थ जुलाई -०७ अंक १४४
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