यह
चार साल पुरानी बात होगी जब मै काम के सिलसिले में भोपाल से झांसी जा रहा
था शताब्दी एक्सप्रेस में, एक युवा मेरे पास बैठा था शुरू में जैसा कि होता
है थोड़ा पंगा हुआ फ़िर बाद में दोस्ती हो गई. पता चला कि वो नारसी मुंजी
सिरपुर के कैम्पस में पढ़ रहा है और बी टेक कर रहा है. ऐसा कुछ रिश्ता बना
कि हम बहुत अच्छे मित्र बन गये वो बिलकुल मेरे बेटे जैसा है. आज अचानक फ़ोन
आया कि भैया मै देवास में हूँ और एक मुसीबत में तो मै भागा मुसीबत हल की और
मै वो यहाँ आये तो मै मिले बगैर कैसे रह सकता था. अपने प्रिय मित्र
बहादुर के साथ जाकर उससे और उसके भाई, भाभी से मिला, साथ खाना खाया.
शुक्रिया प्रखर यह समय देने और देवास आने के लिए...उम्मीद है जैसा कि तुमने
कहा है कि शीघ्र ही आओगे और ज्यादा समय के लिए........Prakhar Chandraa and Bahadur Patel
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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