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मुझे "नीलकंठ" की याद आ गई

मुझे "नीलकंठ" की याद आ गई जिसके बारे में सुना था कि यदि यह पक्षी दिख जाये तो आँखे बंद करके दुआएं मांग लेना चाहिए ताकि हर दुआ कबुल हो जाये.........शुक्रिया Abhishek Thakur इस खूबसूरत भाषाई टुकड़े के लिए............

"दूर उस पार , आबनूस के घने पेड़ उसकी उम्र के साथ ही बड़े हुए थे | बारिश के हर मौसम के बाद इन पेड़ों के बीच से गुजरने के साथ अक्सर वो उस नीले फूलों वाले पेड़ों को खोजा करता था जिसके बारे में उसने अपने पूर्वजों से सुन रखा था | जो बारिश के बाद बस कुछ दिनों के लिए दिखाई देते थे और जिनके तनों से गुजरती हवाओं को सुन लेने पर वो जानवरों की बोली भी समझ सकता था"

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

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