क्षोभ,
करुणा, अवसाद, तनावों और संताप के बीच ही कही रखा था जीवन...जैसे अभी-अभी
कोई श्रृंगार के बहते रस में से इस बचे-खुचे जीवन की चासनी को बहा ले गया
कोई सुख का चरवाहा पानी की बेलौस लगाम को कसते हुए एकदम ले गया हांकते हुए
कि कही कोई छीन ना ले वरना फ़िर खुशी की सौत पसरा ना दें अपना सूपडा इस थाती
पर................
एक बार फ़िर फराज............
अपनी वफ़ा का इस क़दर दावा ना कर फराज़
हमने रूह को जिस्म से बेवफाई करते देखा है
अपनी वफ़ा का इस क़दर दावा ना कर फराज़
हमने रूह को जिस्म से बेवफाई करते देखा है
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