देवास में 'ओटला' का साहित्यिक आयोजन देवास के
मल्हार स्मृति मंदिर में 'ओटला' के साहित्यिक आयोजन की श्रुंखला में एक बार
फिर दिनांक 19/01/2013 को कविता को केंद्र में रखकर महत्वपूर्ण आयोजन हुआ ।
इस अवसर पर 'ओटला प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित पहली पुस्तक
डॉ ओम प्रभाकर कृत 'फेले खुले दो हाथ ' एवं कथाकार ,कवि श्री अमिताभ
मिश्र के कविता संग्रह 'कुछ कम कविता ' का लोकार्पण हुआ।इस प्रमुख अवसर पर
हिंदी के वरिष्ठ कवि श्री राजेश जोशी(भोपाल) एवं श्री नरेन्द्र जैन(विदिशा)
उपस्थित थे। श्री नरेन्द्र जैन ने,डॉ ओम प्रभाकर की कृति 'फेले खुले दो
हाथ ' पर बोलते हुए कहा कि ओम प्रभाकर जी की ये कविताएँ पाठक से सीधा संवाद
करती है।उन्होंने कहा की इस जटिल समय में छंदबद्ध कुछ नहीं होता,इन रचनाओ
से गुजरते हुए लगता है कि इनमे एक आंतरिक लय है। इसके बाद श्री राजेश जोशी
जी ने श्री अमिताभ मिश्र के कविता संग्रह 'कुछ कम कविता' पर अपनी राय
व्यक्त करते हुए कहा कि शायद हमारा समय एक ऐसा समय है जिसे अधिक कविता में
व्यक्त नहीं किया जा सकता।इसे 'कुछ कम कविता ' में ही व्यक्त किया जा सकता
है ।उन्होंने कहा कि इस संग्रह में आज की स्थिति केंद्र में होने के साथ ही
संग्रह में एक खास तरह का व्यंग्य का पुट भी है । यह हमारे समाज की
विडम्बना है कि वर्तमान समय में जो ईमानदार है उन्हें विक्षिप्त करार दे
दिया गया है । इस कविता संग्रह की एक कविता 'दुनिया भर के लोग देखे एक ही
सपना ' पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारे समाज में जिसे जो न्याय मिलना
चाहिए उसे वो न्याय नहीं मिलता।इसके बाद कविता संग्रह की एक और कविता 'पुल
के बाद पुल बनते जाते है ....' के बारे में कहा कि आज के इस समय में हम
जितने पुल बना रहे है ये पुल दुश्चक्र और प्रपंचो से मिलकर बने है जिसके
द्वारा मनुष्य अपने घर नहीं पहुँच सकता । कार्यक्रम के दुसरे सत्र
में आमंत्रित कवियों का काव्यपाठ हुआ. श्री अमिताभ मिश्र ने पहले कविता पाठ
करते हुए अपने कविता संग्रह 'कुछ कम कविता ' से कुछ चुनिदा कविताये पढ़ी
।इसके बाद देवास के वरिष्ठ कवि डॉ ओम प्रभाकर जी ने अपने विचार व्यक्त करते
हुए कहा कि कविता ,कविता होती है ,फिर वो चाहे गद्य में कही जाये या पद्य
में (छंद में )। इसके बाद उन्होंने अपनी कृति 'फेले खुले दो हाथ ' में से
कुछ चुनी हुई नज़्म जैसे- जमी पर मकां लिखे हुए है और गुलोबंद सूखे बगीचा
हरा है, आदि सुनाई । इसके बाद श्री नरेन्द्र जैन ने अपनी कुछ कवितायेँ जैसे
उज्जैनीय में एक पिंजरवाड़ी है, प्रवेश, कूड़ा सभी फैला है, विश्वकर्मा जी
,चौराहे पर लोहार ,मुश्किल ,सुखी लोग जैसी सशक्त कविताओं का पाठ किया. अंत
मे भोपाल से आये और साहित्य अकादमी और अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से
नवाजे गये हिन्दी के वरिष्ठ कवि श्री राजेश जोशी ने कुछ प्रमुख रचनाओं जैसे
में झुकता हूँ ,गुरुत्वाकर्षण, उसकी गृहस्थी, आदि-इत्यादि, बच्चे काम पर
जा रहे है सुबह-सुबह , और जब तक में एक अपील लिखता हूँ का प्रभावी पाठ
किया. ओटला के इस गरिमामयी कार्यक्रम मे देवास इंदौर उज्जैन
एवं भोपाल से कई प्रतिष्ठित साहित्यकार, चित्रकार, बुद्धिजीवी उपस्थित थे,
साथ ही देवास विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री शरद पाचुनकर पुरे समय
उपस्थित थे. कार्यक्रम में बहादुर पटेल, विवेक गुप्ता, प्रदीप मिश्र,
प्रदीप कान्त, प्रभु जोशी, प्रकाश कान्त , दीक्षा दुबे, सुनील चतुर्वेदी,
जीवन सिंह ठाकुर, अमेय कान्त, पारुल रोडे, दिनेश पटेल, मनीष वैद्य, मुकेश
बिजौले, श्रीराम दवे, अक्षय आमेरिया, केदार, अभिषेक, भानु मालवीय, मोहन
वर्मा, ओम वर्मा, विक्रम सिंह, समीरा नईम, संजीवनी कान्त, श्रीकांत तेलंग,
रितेश जोशी, गोविन्द, मोहन , संजय मालवीय, संदीप येवले, संजय शेलगांवकर,
कृष्णा, शुभम, अक्षय पोल, सुनीता खाबिया , रेखा उपाध्याय ,मेहरबान सिंह आदि
प्रमुख लोगो की उपस्थिति रही. अतिथि परिचय श्री
संदीप नाईक द्वारा दिया गया. कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन श्री
दिनेश पटेल ने किया तथा कार्यक्रम का संचालन श्री सुनील चतुर्वेदी द्वारा
हुआ. इस अवसर पर देवास के लेखकों की प्रकाशित पुस्तकों की एक प्रदर्शनी भी
बिक्री हेतु लगाई गई थी.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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