http://www.youtube.com/watch?v=ngZE4EOL_x8
प्रो Purushottam Agrawal
के सौजन्य से यह नाजिम हिकमत की कविता का विडीओ देखा और रोक् नहीं पाया
अपने आपको कहने से कि इसे जरुर देखा जाये जो लोग युद्ध की वकालत कर रहे है
उन्हें यह देखकर सीखना चाहिए कि आखिर मे क्या होता है.
समय रहते अभी
भी हमने अपने देशभक्ति के जूनून मे कही गलत कदम उठा लिया तो हम अपने आपको
कभी माफ नहीं कर पायेंगे. यह सिर्फ विभीषिका नहीं बल्कि एक ऐसी त्रासदी है
जो सदियों तक भुगतना पडती है. ओम थानवी जी ने हीरोशिमा के म्यूजियम का भी
जिक्र किया है.
कितनी करुणा और दर्द है इस बच्ची और कविता मे एक बार
देखे फ़िर क्रंदन सुने सुधाकर की माँ का, और उन सभी सिपाहियों के घर जाकर
आये एक बार फ़िर बात करें युद्ध और आक्रमण क.
नन्ही लड़की
(नाज़िम हिकमत)
अनुवाद: शिवरतन थानवी
दरवाजों पर मैं आपके
दस्तक दे रही हूँ।
कितने ही द्वार खटखटाए हैं मैंने
किन्तु देख सकता है कौन मुझे
मरे हुओं को कोई कैसे देख सकता है
मैं मरी हिरोशिमा में
दस वर्ष पहले
मैं थी सात बरस की
आज भी हूँ सात बरस की
मरे हुए बच्चों की आयु नहीं बढ़ती
पहले मेरे बाल झुलसे
फिर मेरी आँखे भस्मीभूत हुईं
राख की ढेरी बन गयी मैं
हवा जिसे फूँक मार उड़ा देती है
अपने लिए मेरी कोई कामना नहीं
मैं जो राख हो चुकी हूँ
जो मीठा तक नहीं खा सकती।
मैं आपके दरवाजों पर
दस्तक दे रही हूँ
मुझे आपके हस्ताक्षर लेने हैं
ओ मेरे चाचा! ताऊ!
ओ मेरी चाची! ताई!
ताकि फिर बच्चे इस तरह न जलें
ताकि फिर वे कुछ मीठा खा सकें।
(नाज़िम हिकमत)
अनुवाद: शिवरतन थानवी
अनुवाद: शिवरतन थानवी
दरवाजों पर मैं आपके
दस्तक दे रही हूँ।
कितने ही द्वार खटखटाए हैं मैंने
किन्तु देख सकता है कौन मुझे
मरे हुओं को कोई कैसे देख सकता है
मैं मरी हिरोशिमा में
दस वर्ष पहले
मैं थी सात बरस की
आज भी हूँ सात बरस की
मरे हुए बच्चों की आयु नहीं बढ़ती
पहले मेरे बाल झुलसे
फिर मेरी आँखे भस्मीभूत हुईं
राख की ढेरी बन गयी मैं
हवा जिसे फूँक मार उड़ा देती है
अपने लिए मेरी कोई कामना नहीं
मैं जो राख हो चुकी हूँ
जो मीठा तक नहीं खा सकती।
मैं आपके दरवाजों पर
दस्तक दे रही हूँ
मुझे आपके हस्ताक्षर लेने हैं
ओ मेरे चाचा! ताऊ!
ओ मेरी चाची! ताई!
ताकि फिर बच्चे इस तरह न जलें
ताकि फिर वे कुछ मीठा खा सकें।
दस्तक दे रही हूँ।
कितने ही द्वार खटखटाए हैं मैंने
किन्तु देख सकता है कौन मुझे
मरे हुओं को कोई कैसे देख सकता है
मैं मरी हिरोशिमा में
दस वर्ष पहले
मैं थी सात बरस की
आज भी हूँ सात बरस की
मरे हुए बच्चों की आयु नहीं बढ़ती
पहले मेरे बाल झुलसे
फिर मेरी आँखे भस्मीभूत हुईं
राख की ढेरी बन गयी मैं
हवा जिसे फूँक मार उड़ा देती है
अपने लिए मेरी कोई कामना नहीं
मैं जो राख हो चुकी हूँ
जो मीठा तक नहीं खा सकती।
मैं आपके दरवाजों पर
दस्तक दे रही हूँ
मुझे आपके हस्ताक्षर लेने हैं
ओ मेरे चाचा! ताऊ!
ओ मेरी चाची! ताई!
ताकि फिर बच्चे इस तरह न जलें
ताकि फिर वे कुछ मीठा खा सकें।
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