यह एक लंबा दिन था और सुबह जब जाती हुई काली रात को विदा कर नए साल का सूरज उगा रही थी तो लगा कि कुछ होगा, पर धीमे-धीमे जब बादलों की छुपा-छाई में यह छुपता-निकलता रहा तो लगा कि क्या हो रहा है बादलों में ओंस की रजत बूँदें अभी भी तैर रही थी और धूप का कही नामोनिशान नहीं था जैसे-तैसे सूरज का लाल गोला सूर्ख हुआ और फ़िर तेज पर धूप में नमी थी वैसे ही जैसे अक्सर दो आँखों के बीच हमेशा बनी रहती है. सारा दिन एक अलसाई हुई सुबह से निकल रहा था, और फ़िर जीवन अपने ढर्रे पर लौट रहा था, पर आज से एक शाश्वत चिंता जग गई थी जो मुझे लगा कि अब कही से दूर नहीं होगी, सारा दिन धूप और बादलों के बीच अपनी परछाई देखते हुए सोचता रहा कि क्या, कहाँ, कैसे और कब.....एक दिन निकालना मुश्किल हो गया. जब शरीर को काम की आदत हो जाये तो आराम बुरा लगता है. पर लगा कि सब ठीक हो जाएगा और फ़िर जब अभी तक निकल गया और सुबह भी निकल आई है तो शायद यह अन्धेरा भी छंटेगा और फ़िर बादलों के बीच से दमकता सूरज निकलेगा..पर यह उम्मीद कितने दिनों तक ज़िंदा रहेगी पता नहीं पर इसके सिवाय अब कोई और रास्ता भी तो नहीं है. बस इसी नर्मदा के किनारे फ़िर एक बार घूम आया कि कही कोई हलचल है पानी में, भीड़ थी, लोग डूबकियां लगा रहे थे, नर्मदा का शांत जल बह रहा था अपनी गति से, घाटों पर यज्ञ-हवन चल रहे थे सारे पाप-पुण्य इसी जीवन में ले लेने की आस में लोग लगे थे परन्तु मै कही खोज रहा था अपना प्रारब्ध और अपने होने का अर्थ दूर कही गूँज रहे थे स्वर.....नर्मदे हर, हर, हर....(नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथा में मै)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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