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स्व रावल जी एवं महेंद्र भाई स्मृति व्याख्यान में हर्ष मंदर और अनुराधा शंकर सिंह



कल इंदौर में स्व रावल जी एवं महेंद्र भाई स्मृति व्याख्यान में हर्ष मंदर और अनुराधा शंकर सिंह मुख्य वक्ता थे. कई मित्रों से मिलना हुआ. जहां तक व्याख्यान की बात है अनुराधा जी तो ट्रेक पर थी परन्तु हर्ष मंदर विषय से परे ही बोलते रहे सारा भाषण उनका मुहब्बत और समतामूलक समाज पर था. यह सही है कि हम सभी ऐसे समाज की कल्पना करते है और चाहते भी है कि हम ऐसे समाज में जिए पर कैसे होगा यह सपना पूरा ??? चिन्मय मिश्र का संचालन प्रभावी था और वो बार-बार इंगित भी कर रहे थे कि वक्तागण मुद्दे पर बोले पर.........खैर गत अठारह बरसों से यह कार्यक्रम हो रहा है यह संतोष की बात है और फ़िर एक कार्यक्रम करने में जान निकल जाती है यह हम सब जानते है. डा असीम रावल, कृष्णाजी, रामबाबू, सिद्धार्थ, सम्यक, चिन्मय, सरोज भाभी, प्रत्युष यानी कनु, राकेश दीवान, और बहुत सारे लोग और साथी ऐसे है जो इस तरह के कार्य में पूरी निष्ठा और प्रतिबद्धता से लगे रहते है. यह सुखद और संतोषप्रद है. मालवा में और इंदौर, एक ओर जहां मिलने-जुलने की परम्परा खत्म हो रही है वहाँ ऐसे आयोजनों से बहुत ऊर्जा मिलती है.


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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही