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बदल डालो उस नेतृत्व को जो इसके विकास में बाधक है और फ़िर से बना दो -देवों का वास यानी देवास.

ना जाने क्यों लगा कि आज अपने पुराने मोहल्लों की सैर की जाये, सो, शुक्र्वारिया हाट से एबी रोड होता हुआ गजरा गियर्स, साकेत, राधागंज, के पी कॉलेज , नयापुरा, पठान कुआ, बड़े बाजार, रज्जब अली खां मार्ग, वृन्दावन महाराज की गली, शालिनी रोड, खारी बावडी, हेबत राव मार्ग, एकता क्लब चौराहा, बजरंगपुरा, मील रोड होते अभी घर लौटा हूँ.
मै बात कर रहा हूँ देवास की और जो स्थान - मोहल्लें ऊपर गिनाए है इन सभी जगहों का ऐतिहासिक महत्व है और मेरी स्मृति में इन सभी जगहों का इतना स्थान है कि बता नहीं सकता. पर क्या हालत हो गई शहर की. जगह-जगह सड़क खुदी पडी है, गन्दा नालें बह रहे है सडकों पर, बजबजाते कचरे के ढेर, आवारा कुत्ते-सुअर-गाय-भैंस पगुरा रहे है, ट्राफिक का बुरा हाल, अतिक्रमण की इन्तेहा और चारों ओर लोग निराश हताश और परेशान कोई कहने सुनने वाला नहीं. मुझे नहीं पता कि इस शहर में नगर निगम है या मृत प्राय है, प्रशासन है या भ्रष्ट कर्मचारियों की फौज, जन प्रतिनिधि है या चापलूसों की जमात, नेता है या नाकारा लोगों की फेहरिस्त.
क्या हो गया है इस शहर को ??? क्या था और क्या हो गया है, पिछले बीस बरसों में यह शहर एक मरा हुआ शहर हो गया है. जहां ना कोई बोलता है, ना सुनता है, ना करता है ना करवाना चाहता है. ये सिर्फ मोहल्लों के हाल नहीं शहर से दूर बसी संभ्रांत कालोनियों के भी यही हाल है बल्कि यहाँ और हालात खराब है. आखिर कहाँ जा रहा है विकास के नाम पर रूपया, नगर निगम और स्थानीय निकाय कर क्या रहे है, हमारे जन प्रतिनिधि और अधिकारियों की लंबी फौज कहाँ गुलछर्रे उड़ा रही है, कांग्रेस हो या भाजपा कर क्या रही है ये लोगों से जुडी पार्टियां, और सबसे ज्यादा निराशा यह कि लोग बोलते क्यों नहीं किसका डर है, किस सामंत से डर है? किसी समय में राज घरानों का यह खूबसूरत शहर, इ एम फास्टर का शहर, कुमार गन्धर्व, अफजल, नईम और प्रिया-प्रताप का शहर कहा गया. क्यों एक बुझदिली हावी हो गई है, क्यों इसके लोग अब प्रखर नहीं है, क्यों यहाँ अपने लिए, अपने संवैधानिक अधिकारों की बात कोई नहीं करता, क्यों यहाँ का जागरूक मीडिया इस सबको लेकर चिंतित नहीं है, क्यों नहीं यहाँ के ढेर सारे वकील, डाक्टर और समाजसेवी कुछ करते नहीं, क्यों नहीं यहाँ के उद्योगपति कुछ एक्शन नहीं लेते???
ऐसे तो मिट जाएगा इतिहास से एक शहर वैसे भी दरवाजे तोडकर शहर टूट रहा है, बिखर रहा है धीमे-धीमे......सम्हाल लो दोस्तों इस शहर को सम्हाल लो अब नहीं तो कब और दो चुनौती उस पुरे तंत्र को जो इसके होने के लिए जिम्मेदार है, बदल डालो उस नेतृत्व को जो इसके विकास में बाधक है और फ़िर से बना दो इसे देव- वास यानी देवों का वास यानी देवास.

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