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मौत तो एक कविता है

 
शुरू दौर में जिन दो लोगों के नाम हम जानते थे, उनमें राजेश खन्ना भी थे। तब हमने टेलिविजन नहीं देखा था। सिनेमा हॉल की कल्पना भर करते थे। तुमने काजल लगाई दिन में रात हो गई टाईप के गाने तब हमें खूब सुनने को मिलते थे और कौलेजिया लड़के आपस में बात करते हुए राजेशा खन्ना-राजेश खन्ना किया करते थे।
हमने राजेश को पहली बार श्वेत श्याम टेलिविजन पर ही देखा। कभी जब वे मूछें लगाकर या दाढ़ी बढ़ाकर पर्दे पर चले आते तो हमें पहचानने में दिक्कत होती। यह सन 1986-87 के आस-पास की बात होगी। जब लोगों के दिलों पर अमिताभ का जलवा तारी था। हमारे जमाने में राजेश खन्ना सीधे-सादे हीरो के रूप में जाने जाते थे।
अपने कम अक्ली में हमने लेकिन अमिताभ को ज्यादा महत्व दे रखा था।
राजेश को सही तरीके से हमने आनंद में पहचाना। फिल्म देखकर हफ्तों परेशान रहे। बार-बार कई बार देखी। इसके बाद अमर प्रेम और अमृत अवतार जैसी फिल्में भी।
खास बात यह कि फिल्म जगत एक अजीब सा जगत है, जहां लोग आते हैं जाते हैं। उठते गिरते सम्हलते हैं। कभी आसमान पर रहने वाला कोई एक अभिनेता आम लोगों के साथ मुंबई की बसों में सफर करता दिखता है। राजेस के साथ वह दिक्क नहीं रही कभी जो भारत भूषण के साथ थी। हां, राजेश आसमान से जमीन पर आए थे। आसमान से जमीन पर आना उनके लिए इतना बड़ा सदमा था जो शायद वे कभी भूल नहीं पाए।
दो दिन पहले ही छोटे भाई से उनके बारे में बात हो रही थी। मैंने कहा कि अब हमें सबकी मौत देखनी है। मेहदी, जगजीत, दारा और अब राजेश खन्ना...। फिर हमारी बारी भी आएगी एक दिन....।

तो जिंदा रहें जितने दिन एक दूसरे से प्यार करें... रंजिश भुला दें..... एकदम खांटी आदमी बनकर रहें...। क्योंकि एकदिन यमराज का चाबुक हमारे उपर भी पड़ने ही वाला है...।

मन थोड़ा उदास हो गया है।

पसंदीदा अभिनेता को आखिरी विदाई....।
किसी के पापा स्मार्ट हैं सिर्फ इस बात से तय होता कि उनकी सालियों ने उन्हें दबी जुबान से ही सही राजेश खन्ना कहा कि नहीं.राजेश खन्ना तो एक ही थे लेकिन वो एक शख्स, एक अभिनेता से कहीं ज्यादा भारतीय समाज के रुपक थे. सांवले,आगे के बाल उड़े, एक पैर से थोड़े भटकनेवाले, थोड़े नाटे चाहे जैसे भी..फुआ और दीदी की मर्जी को जाने बिना लोग उनका जीवन इन आदमियों के साथ बांध देते और एक अकेले रुपक से कि कहो कुछ दीदी,जीजाजी एकदम राजेश खन्ना जैसे मुस्कराते हैं, चलते हैं, बाल बनाते है..वो अरेंज मैरिज में एडजेस्ट करने की कोशिश करने लग जाती..सही भी है, इस देश में ऐसा कौन शख्स नहीं होगा जिसका कुछ न कुछ राजेश खन्ना से नहीं मिलता-जुलता होगा, हां ये जरुर है, कुछ दीदी इस रुपक में जीने की आदतों के बीच सचमुच के बाबू मोशाय से एक बार मिलने की हसरत रखती थी..जिन हजारों-लाखों महिलाओं ने इस राजेश खन्ना रुपक के सहारे जिंदगी खेपती आयी है, उसे आज तुम कुछ ज्यादा ही याद आओगे बाबू मोशाय..
मौत तो एक कविता  है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको....
डूबती नब्जो में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए सहा नींद उफ्क तक पहुंचे
दिन अभी पानी में हो रात किनारे के करीब
न अभी अन्धेरा हो न उजाला हो
न रात न दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को सांस आये
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको.......

*राजेश खन्ना जी ने ये संवाद आनंद फिल्म मैं आनंद बनकर बोला...और कविता से मिल गए खुद....मिलना है सबको कविता से...आज वो मिले कल हम मिलेंगे....जाने वाले चले जाते है...पर छोड़ जाते है एक अशांति पीछे रहने वालो के लिए....याद बहुत आते है वो..













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