Saurabh Arya says
सरकारी स्तर पर होने वाली खरीद के संबंध में राजभाषा विभाग, भारत सरकार का नियम कहता है कि प्रति वर्ष एक मंत्रालय/विभाग/ किसी भी केन्द्रीय कार्यालय द्वारा खरीदी जानी वाली कुल पुस्तकों की राशि का न्यूनतम 50 % हिन्दी पुस्तकों पर व्यय होना चाहिए. बस यहीं से इस गोरखधंधे की शुरूआत हो जाती है. इसमें कोई संदेह नहीं कि राजभाषा विभाग ने यह नियम हिंदी पुस्तकों और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए किया है. परंतु इन कार्यालयों के लिए पुस्तक चयन समिति के कोई मानदण्ड निर्धारित नहीं किए हैं. हालांकि राजभाषा विभाग एवं एकाध सरकारी समिति कुछ श्रेष्ठ पुस्तकों को अनुशंसा जरूर करती हैं पर यह नियमित आधार पर नहीं हो रहा है एवं उसमें नई और उत्कृष्ट पुस्तकें अपना स्थान नहीं बना पा रही हैं. आम तौर पर विभागों के अधिकारी अपने यारों-प्यारों की पुस्तकों और कमीशन देने वाले प्रकाशक से पुस्तकें थोक में खरीद रहे हैं. पाठकों ने किन पुस्तकों को कितना पढ़ा, पाठकों की इन पुस्तकों के स्तर पर प्रतिक्रिया को भी सरकारी खरीद के समय मद्देनज़र रखा जाना चाहिए. इस बारे में दो-चार आर टीआई तो मेरे दिमाग में भी घूम रही हैं. आप लोग भी अपने आस-पास इस बारे में सचेत रहें और पुस्तकालयों को कचराघर बनने से बचाएं.
यानी कि हिन्दी के लोग ही हिन्दी के दुश्मन................है???
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