I
मै तुम्हे पहचानता हूँ,
अपनी हथेली की तरह
तुम्हारे माथे पर
उभर आयी रेखाएँ
मेरे हाथ की लकीरों जैसी दिखती है.
II
मोबाईल में दर्ज है
कई नाम और नंबर ऐसे
जिन पर लंबे अरसे से
मैंने कोई फोन नहीं किया.
III
वे तरसते रहे एक दूजे के लिए
और हाय री किस्मत
कि कभी मिल ना पाए आलमारी में भी
पर अटका रहा उनका प्राण एक दूसरे में
मन की पुतलियों में बसा रहा मिलन स्वप्न
अपने प्रिय अनुज और हिन्दी के वरिष्ठ कवि Jitendra Srivastava के तीनों कविता संकलन मेरे सामने है और बहुत तल्लीनता से उन्हें पढ़ रहा हूँ लगता है एक एक कविता एक सदी की कहानी है जो छोटे छोटे जीवनाभुनवो से शुरू होकर बहुत बड़े फलक पर जाती है. "असुंदर सुन्दर", "बिलकुल तुम्हारी तरह" और " कायांतरण" वाह क्या बात है भाई.......बाहर बरसात है नर्मदा का किनारा, और कही दूर बहा ले जाती कवितायें सच में मन को गहरी तसल्ली और आश्वस्ति देती है कि हिन्दी का काव्य बहुत सशक्त है और अभी इसमे बहुत कुछ ठोस और सार्थक है जो इसे हमेशा शाश्वत रखेगा.
मै तुम्हे पहचानता हूँ,
अपनी हथेली की तरह
तुम्हारे माथे पर
उभर आयी रेखाएँ
मेरे हाथ की लकीरों जैसी दिखती है.
II
मोबाईल में दर्ज है
कई नाम और नंबर ऐसे
जिन पर लंबे अरसे से
मैंने कोई फोन नहीं किया.
III
वे तरसते रहे एक दूजे के लिए
और हाय री किस्मत
कि कभी मिल ना पाए आलमारी में भी
पर अटका रहा उनका प्राण एक दूसरे में
मन की पुतलियों में बसा रहा मिलन स्वप्न
अपने प्रिय अनुज और हिन्दी के वरिष्ठ कवि Jitendra Srivastava के तीनों कविता संकलन मेरे सामने है और बहुत तल्लीनता से उन्हें पढ़ रहा हूँ लगता है एक एक कविता एक सदी की कहानी है जो छोटे छोटे जीवनाभुनवो से शुरू होकर बहुत बड़े फलक पर जाती है. "असुंदर सुन्दर", "बिलकुल तुम्हारी तरह" और " कायांतरण" वाह क्या बात है भाई.......बाहर बरसात है नर्मदा का किनारा, और कही दूर बहा ले जाती कवितायें सच में मन को गहरी तसल्ली और आश्वस्ति देती है कि हिन्दी का काव्य बहुत सशक्त है और अभी इसमे बहुत कुछ ठोस और सार्थक है जो इसे हमेशा शाश्वत रखेगा.
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