हिन्दुस्तान का विकास जाति
हटाये बिना नहीं हो सकता और अब ये चुनौती सिर्फ और सिर्फ युवा ही स्वीकार
कर सकते है ................तय करे कि ना जाति बताएँगे, ना पूछेंगे, ना
मानेंगे..............
जाति
बनाए रखने में ही असल में सबका फ़ायदा है और यही वो मूल कारण है कि कोई इसे
गम्भीरता से नहीं लेना चाहता ब्राहमण, वैश्य, ठाकुर और दलित सब अपने
"कम्फर्ट ज़ोन" में बने रहना चाहते है और इसका फ़ायदा राजनेताओं ने उठाया है
चाहे वो अम्बेडकर हो, गांधी हो या आज तक के सारे कांग्रेसी, बसपाई, भाजपाई,
समाजवादी, वामपंथी, दलित पेंथर हो या कोई भी...........और जब तक हम बहुत
दृढता से इसे खत्म नहीं करेंगे चाहे वो आरक्षण
हो या ढेरों प्रकार के दस्तावेजों में जाति का कालम या प्रवेश प्रक्रिया
हो या लाभ लेने की बात हो, वरना तो ऐसे दर्जनों कार्यक्रम है आम्बेडकर
संस्थान है, क़ानून है और मैला ढोने की प्रथा हो.............सरकार हो या
एनजीओ हो या फंडिंग एजेंसी - सब इस हमाम में क्या है - हम सबको मालूम है.
..............मेरा पक्का मानना है कि जाति खत्म करने में किसी की रूचि
नहीं है सब मजे ले रहे है और इसको खत्म करने के नाम पर अपनी रोजी - रोटी
चला रहे है ............क्या हो गया आप लोग सोच रहे है कि मै "निगेटिव" हो
गया हूँ पर सच है बोस एक बार अपने गिरेबान में झाँक कर देख
ले................कि मै सच बोल रहा हूँ या आप सच सोच रहे
है...................
चलो यूँ किया जाये कि जो
पार्टी जाति खत्म करके देश का विकास और सबको विकास का समान मौका देगी उसे
ही सन २०१४ में हम लोग वोट देंगे ये उदाघोषणा उत्साही युवा कर दे जो ४५%
है तो किस माई के लाल में हिम्मत है ...........है कोई भाजपाई, कांग्रेसी, बसपाई, समाजवादी, वामपंथी , दलित समूह, क्षेत्रीय दल, या यूपीए या कोई ..............? हमें मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल बहलाने के लिए ये ख्याल अच्छा है..............
जब
हर्ष मंदर सचिव हुआ करते थे तो मुझे याद पडता है देवास की कई महिलाओं के
लिए उन्होंने उज्जैन के भेरुगढ़ प्रिंट के चादरों का काम सीखाया था पर
कालान्तर में उनसे कोई खरीदता नहीं था, बाद में एक्शन एड से सहायता प्राप्त
संस्था जन साहस ने यह काम उठाया यात्राएं
निकाली देवास से पन्ना तक पर ढाक के तीन पांत ..........अभी भी दबे छुपे
रूप में ये प्रथा जारी है साथ ही सीहोर में पिछले बरस जब मै वहाँ था तो
मेरे देखने पर मैंने प्रशासन के माध्यम से यह प्रथा बंद करवाई थी. हमारे एक
साथ ने रेलवे में जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी थी तो रेलवे ने
साफ मना कर दिया था कि वे इस प्रथा को बंद नहीं कर सकते ...........मामला
गंभीर है और मांग करता है कि शासन एक टास्क फ़ोर्स बनाकर इस पर संजीदगी से
काम करे.............
दलित आंदोलन को बाबा साहब
आम्बेडकर और गांधी मार्गियों को गांधी के आगे जाना पडेगा आम्बेडकर और गांधी
को छोडकर, तभी आज के मुद्दे निकलेंगे और उन पर ठोस बदलाव भी
आएगा..........अन्यथा जो आम्बेडकर और गांधी के साथ खड़े है वो हजारों बरस
पीछे है आज ये मुद्दे दूसरे स्वरूपण में है और इन पर नए तरह से सोचने की
जरूरत है ना कि आम्बेडकर या गांधी की तरह से सोचने से काम चलेगा. पर हाँ
निश्चित रूप से मायावती की तरह से नहीं !!!!!!!!!!!
Comments