नया लौंडा था एकदम अन्तर्राष्ट्रीय गिरगिटो से दक्ष होकर जिले में आया ही था, बेचारा ना भारतीय प्रशासनिक सेवा को जानता था ना, ना इनके घाघ उल्लूओं को जो जिले में तीन साल के लिए जिले को बाप की संपत्ति मानकर बैठ जाते थे अंगद के पाँव की तरह और घर भर के लिए खानदान भर की कमाई कर लेते थे. खैर नया था सो उसने गिरगिटों के कहने पर जिलाधीश को अपनी नियुक्ति दी और कहा कि साहब मै इस आपके जिले में विटामिन "ए" का काम देखूंगा ताकि सारे नवजात बच्चों को विटामिन "ए" सप्लीमेंट मिल सके और वे स्वस्थ जीवन जिए. जिलाधीश के पल्ले कुछ पड़ा नहीं, थोड़ी देर तो काफ्का और सार्त्र की तरह सोचता रहा फ़िर पेपरवेट घूमाता रहा टेबल पर, फ़िर उससे बोला वो तो ठीक है अब ये बताओ विटामिन "बी", "सी", "डी" पिलाने के लिए कौन सी नियुक्ति होगी फ़िर बोला और खास एक बात विटामिन "बी काम्प्लेक्स" पिलाने के लिए कौन आएगा? देखो ऐसा है मुझे बेवकूफ मत समझना मै भा प्र से का अधिकारी हूँ और प्रदेश मुखिया की गुड बुक में हूँ तो मेरे जिले में सभी प्रकार का विटामिन सभी उम्र के लोगों को मिलना चाहिए वरना मै शासन को लिख दूंगा कि तुम्हारी इस जिले को जरूरत नहीं है....नया युवा प्रोफेशनल बन्दा चकित था कि कैसा अधिकारी है यह जो बुनियादी बातें नहीं जानता पर उसने अपने लाइन मेनेजर गिरगिट से पूछा कि अब क्या करू तो जवाब मिला कि जैसा भा प्र से के अधिकारी कहे वैसा ही घोल पिलाना क्योकि साहब है तो अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, संस्था है तो हम है, हम है तो ऐश है, ऐश है तो हवाई यात्राएं है, और हवाई यात्राएं है तो सुन्दर महिला कंसल्टेंट है, और जब ये है जीवन है, वरना काहे का ताना काहे का बाना..........ही ही ही सो सबको पिलाओ विटामिन और सारे विटामिन ( प्रशासनिक पुराण 51)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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