जहां भी गये अहम छोड़ आये
सलोने सलोने गम छोड़ आये
सलोने सलोने गम छोड़ आये
होशंगाबाद
में आज अभी अमृतलाल वेगड से मिला और जब अपना परिचय दिया तो उन्होंने देवास
को रुंधे हुए गले से याद किया, कुमार जी और नईम जी की स्मृति को नमन करते
हुए बड़ी देर तक बातें करते रहे और कहा कि "नईम जी और सुल्ताना जी दोनों
मेरे घर जबलपुर आ चुके है और भोजन किया था खूब गपशप की थी, कुमार जी के भजन
और कबीर की निर्गुण धारा को मैंने नर्मदा परिक्रमा के दौरान बहुत बारीकी
से सुना, देखा और महसूसा है. मालवा की
समृद्ध संस्कृति से वे अभिभूत थे. देवास के साहित्यिक और सांगीतिक माहौल
जैसा माहौल बिरले शहरों में होता है और वहाँ जन्म लेने वाले को घूंटी में
साहित्य संगीत की विरासत संस्कारों में मिलती है". होशंगाबाद में
नर्मदापुरम कला जगत द्वारा आयोजित से ठाकुर ब्रजमोहन सिंह "सत्य कवि" के
गीतों को संगीतमय कर यहाँ के स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति को प्रोत्साहित
करने आये वेगड जी ने नर्मदा नदी और संगीत से जुड़े वरिष्ठ गायकों और संगत
कलाकारों की स्मृतियों को साझा किया और कहा कि संगीत ही वो शक्ति है जो हर
समय आपको चेतन रखती है. अपनी नर्मदा यात्रा के दुर्लभ और मुश्किल समय को
याद करते हुए कहा कि एक ढीमर ने कहा था कि पंडित जी इतना सामान ले लिया पर
बहुत महत्वपूर्ण सामान जो ढपली है वो रखी ही नहीं तो नर्मदा परिक्रमा
व्यर्थ है. विचार धारा के तौर पर वेगड जी जो भी विचारधारा रखते हो पर
नर्मदा पर लिखा उनका महत्वपूर्ण कार्य आज तक किया गया श्रेष्ठ लेखन है और
अतुलनीय है. सहज, सादे और बहुत ही आत्मीयता से मिलने वाले वेगड जी सच में
अच्छे आदमी है. बहुत गर्व होता है कि देवास के लोगों की इस भीड़ में मै शामिल हूँ और बहुत सौभाग्यशाली कि इन सब लोगों को करीब से देखा है मालवे के प्रभाष जोशी, कुमार जी, नईमजी, राहुल बारपुते, बाबा डीके, मेरे गुरु विष्णु चिंचालकर, वसुंधरा ताई, चंद्रकांत देवताले जी, प्रकाश कान्त, प्रभु जोशी, कृष्णकांत निलोसे, अफजल साहब, नारायण बेंद्रे एवं मोना बेंद्रे, भालू मोंढे, प्रिया-प्रताप पवार (कत्थक नर्तक) ये सब लोग मेरे बनने और होने में शामिल रहे है और मै शायद दुनिया के उन बिरले लोगों में हूँ जिन्हें इन सबका स्नेह और अपनत्व मिला. कभी कभी सोचता हूँ कि ये अगर जीवन में ना मिलते तो क्या सिखता और क्या बन् जाता.............
Comments