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सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में

आज सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष पहुँच गयी है, मुझे लगता है कि अब जेंडर के मुद्दों को नए परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत है. कहाँ  प्रायोजित मीडिया विमर्श में हम गौहाटी का मुद्दा, फ़िर महिला आयोग की सजी संवरी गुडियाओं के नाम पर मातम पुरसी करते रहेंगे. दरअसल में सब मीडिया की चाल है अब यह सिद्ध हो ही गया है, और जेंडर वादी बहने भी बहनापा जताकर चुप बैठी है, सब चुप है, अजीब सी बहस चल रही है और देखत देखते अपने काम और लक्ष्य में लगी सुनीता अपने उद्देश्य को पूरा करने निकल गयी किसने आड़े हाथ दिए है करने वालियों को....................हिम्मत है तो करे वैसे भी भले ही निगेटिव पर परोक्ष रूप से इस समय देश में ताकतवर महिलाए सच में अपनी ताकत दिखा रही है तो कुल मिला के कहना यह है कि बहुत हो गया गौहाटी और महिला आयोग के पुराण जिसने कमाना था कमा खा लिया, असली मुद्दों की बात करो और नए सन्दर्भों में बात करो और इन पर काम भी करो...........अभी म् प्र में जिस तरह से थोकबंद तबादले हुए है उसमे कितना रूपया इन्ही अबलाओं ने खाया-पीया-लिया-दिया है किसी ने पूछा...............? छोडो......बकौल रांगेय राधव कि संसार में सबको दुःख होता है और अपना दुःख सबसे बड़ा लगता है.......

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

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मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

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शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...