भोजन का अधिकार एक बड़ा मामला था देश में जब साले गरीबो के बच्चे भूख से मरने लगे वो आया और खूब बड़ी मीडिया की टीम लेकर आया ताकि इस पिछड़े प्रदेश की सरकार को जगा सके बड़ी धाँसू पत्रकार वार्ता थी बच्चो की मौत का क्या रोना धोना था फिर उसके बाद भोजन भी गजब का था, सबने देखा कि उसने चिकन का सिर्फ एक हिस्सा खाकर छोड़ दिया थाली में कि उससे अब खाया नहीं जाता बस ३-४ प्रकार के ज्यूस पीता रहा (एनजीओ पुराण भाग ६९)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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