झूठ बोलना उसकी नौकरी में शामिल था वो सब्जबाग दिखाए था धीरे धीरे वो खुद कब इन ख्वाबो में फंस गया उसे पता ही नहीं चला फिर वो कामरेडों सी बाते करने लगा और मार्क्स और चे गवारा की दुनिया में रहने लगा और उसे लगा कि बस अब वो भी प्रदेश का कर्मवीर हो जाएगा और पार्टी का कार्ड उसे एक नई दुनिया में ले जाएगा, पर पत्नी की डिमांड पर वो कर्तव्य परक पति बन गया और फिर एक यूएन की नौकरी करने लगा आजकल वो आदिवासी संस्कृति का विशेषज्ञ है(एनजीओ पुराण भाग ५९)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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